Indian geography (drainage system) भारत का अपवाह तंत्र (drainage system of india in hindi)
Indian geography (drainage system) भारत का अपवाह तंत्र नोट्स (drainage system of india in hindi)
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अपबाह तंत्र (drainage system)
→ एक निर्धारित जलमार्गों द्वारा जल के प्रवाह को अपवाह कहा जाता है। इस प्रकार के जलमागों के जाल को अपवाह तंत्र कहते हैं। नदियों और सहायक नदियों के विन्यास को प्राकृतिक अपवाह का प्रतिरूप कहा जाता है। कुछ कारक किसी क्षेत्र के अपवाह प्रतिरूप को निर्धारित करते हैं। ये कारक हैं। चट्टानों का स्वरूप और संरचना, स्थलाकृति, ढाल, प्रवाहित जल की मात्रा तथा प्रवाह समय के अनुसार घट-बढ़ ।
अपवाह के विविध प्रतिरूप होते हैं। इनमें से कुछ प्रतिरूप हैं हुमाकृतिक (वृक्षाकार), जालीनुमा, : अभिकेन्द्र और गुबंदाकृति। जब अपवाह की आकृति वृक्ष के समान हो जाती है, तो अपवाह के प्रतिरूप को द्रुमाकृतिक कहते हैं। जब नदियाँ किसी पहाड़ी से चारों ओर विकीर्ण होती हैं, तो इस प्रतिरूप क अरीय प्रतिरूप कहते हैं। अभिकेंद्री प्रतिरूप में नदियाँ किसी गर्त या झील में मिल जाती हैं।
介 जालीनुमा प्रतिरूप में प्रमुख सहायक नदियाँ एक दूसरे के लगभग समान्तर बहती हैं, जबकि गौण सहायक नदियाँ दोनों ओर से आकर मिलती हैं। गुंबदाकृति अपवाह प्रतिरूप में वलयाकार और अरीय अपवाह के तत्त्वों का मिला- -जुला रूप होता है।
भारतीय अपवाह के प्रतिरूपों का अध्ययन बड़ा रोचक है। विशाल मैदान के अपवाह प्रतिरूप
डुमाकृतिक हैं, जबकि हिमालय पर्वतमाला और पूर्वाचल के नाम से प्रसिद्ध पूर्वी पहाड़ियों में
अपवाह का प्रतिरूप जालीनुमा है। प्रायद्वीपीय नदियाँ आयताकार प्रतिरूप बनाकर बहती हैं। थार
मरुस्थल की विशेषता अभिकेंद्री अपवाह प्रतिरूप है।
जल संभर (water shed) एक क्षेत्र है, जिसका जल कोई नदी बहाकर ले जाती है। इसकी सीमा वह रेखा बनाती है, जो एक नदी के जल संभर को दूसरी नदी के जूल संभर से पृथक करती है। Best
介 विशाल नदियों के जल संभर को नदी द्रोणियाँ (बेसिन) कहा जाता है, लेकिन छोटी सरिताओं और नालियों के रोके क्षेत्र जल संभर ही कहे जाते हैं। फिर भी, जल संभरों और नदी- द्राणियों में थोड़ा सा अंतर है। जल संभरों का क्षेत्रफल प्रायः 1,000 हेक्टेयर से कम ही होता है। जल संभर के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि उनका निर्माण छोटी नदियों द्वारा ही हो। बिना किसी छोटी सरिता के भी जल संभर को देखा जा सकता है। इसके लिए केवल किसी क्षेत्र से जल प्रवाह का होना जरूरी है, जो किसी जलमार्ग या झील में चला जाता है।
सहक्रिया और एकता नदी द्रोणियों और जल संभरों की पहचान है। किसी द्रोणी या जल संभर में होने वाली घटना का प्रत्यक्ष प्रभाव इसके दूसरे भाग तथा संपूर्ण इकाई पर पड़ता है। इसीलिए इन्हें बृहत / लघुस्तर विकास के नियोजन के लिए उपयुक्त नियोजन प्रदेश के रूप में स्वीकार किया गया है।