मौर्य साम्राज्य का इतिहास पीडीएफ नोट्स । maurya vansh ka itihas । History of maurya dynesty pdf in hindi
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मौर्य इतिहास के स्रोत
मौर्य साम्राज्य की अवधि भारत के इतिहास में एक नया इतिहास लिखती है। मौर्य साम्राज्य के पुराने इतिहास के बारे में काफी कुछ ज्ञात है, हालांकि बहुत बड़ा हिस्सा अभी भी अज्ञात है और इतिहासकर उसके विवेचन में लगे हुए हैं। मौर्य काल के इतिहास के स्रोत इस प्रकार हैं-
मेगस्थनीज
मेगस्थनीज यूनानी शासक सेल्यूकस का राजदूत था। मेगस्थनीज चन्द्र गुप्त के दरबार में था और चौदह वर्षों तक भारत में रहा। अपनी पुस्तक इंडिका में उन्होंने राज्य के प्रशासन, स्थानीय प्रशासन, राजा के जीवन सहित भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया है। यह मौर्य राजवंश के बारे में विवरण जानने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी मौर्य वंश के ज्ञान का बहुत महत्वपूर्ण स्रोत है। चाणक्य या कौटिल्य चंद्र गुप्त के मंत्री थे। उन्होने उस समय देश की समकालीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों पर प्रकाश डाला हैं। उन्होंने राजा के कर्तव्यों, उनकी विदेश नीति और जासूसों के संगठन के बारे में जानकारी भी दी।
शिलालेख
अशोक के शिलालेख मौर्य काल के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं। वे उसके साम्राज्य, उसकी धार्मिक नीति, प्रशासन और उसके चरित्र के विस्तार के बारे में ज्ञान प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अन्य स्रोत
'महावंश', 'दिपमरास', 'दिब्यवदन बौद्ध ग्रंथ मौर्य काल के संबंध में बहुत सी जानकारी प्रदान करते हैं। विशाखदत्त का मुद्रराक्षस एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। पुराण, तिब्बती और नेपाली पुस्तकें भी महत्वपूर्ण हैं। जूनागढ़ का शिलालेख, जिसे रुद्रदमन ने लिखा था, वह भी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
मौर्य साम्राज्य का उदय
मौर्य साम्राज्य का प्रारंभ चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 321 ईसा पूर्व में मगध से हुआ। विशाखादत्त द्वारा रचित 'मुद्राराक्षस में चाणक्य की मदद से चंद्रगुप्त मौर्य के उदय का सुदंरता से चित्रण किया गया है। चंद्रगुप्त मौर्य जैनधर्म का अनुयायी था।पाटलिपुत्र, आधुनिक पटना मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी।
मौर्य साम्राज्य का विस्तार
मौर्य साम्राज्य उस समय के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था और 5,000,000 वर्ग कि.मी से भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तारित था। उत्तर-पूर्व भारत के हिस्सों, केरल और तमिलनाडु को छोड़कर मौर्यों ने शेष भारतीय उप महाद्वीपों पर शासन किया था।
राजव्यवस्था
1. मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका और अर्थशास्त्र (कौटिल्य द्वारा लिखित) के विवरणों में मौर्य प्रशासन, समाज और अर्थव्यवस्था का विस्तृत वर्णन किया गया है।
2. साम्राज्य प्रांतों में विभाजित था, जिसका शासन राजकुमारों के हाथ में था। इसके साथ 12 विभागों, सैन्य बलों में छह शाखाओं का भी उल्लेख किया गया है। चंद्रगुप्त ने एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र को स्थापित किया और एक ठोस वित्तीय आधार प्रदान किया।
मौर्य राजवंश के शासकों की सूची
चन्द्रगुप्त मौर्य (321 298 ईसापूर्व )
चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के महान सम्राट थे। इन्होंने मौर्य सम्राज्य की स्थापना की थी। मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया 321 ई.पू. निर्धारित की जाती है। उन्होंने लगभग 24 वर्ष तक चन्द्रगुप्त शासन किया।
मेगस्थनीज ने चार साल तक चन्द्रगुप्त की सभा में एक यूनानी राजदूत के रूप में सेवाएँ दी। ग्रीक और लैटिन लेखों में, चन्द्रगुप्त को क्रमशः सैण्ड्रोकोट्स और एण्डोकॉटस के नाम से जाना जाता है। प्लूटार्क के अनुसार सान्द्रोकोत्तस ने सम्पूर्ण भारत को 6,00,000 सैनिकों की विशाल वाहिनी द्वारा जीतकर अपने अधीन कर लिया। जस्टिन के मत से भारत चन्द्रगुप्त के अधिकार में था । चन्द्रगुप्त ने सौराष्ट्र की विजय भी की थी। महाक्षत्रप रुद्रदामन् के जूनागढ़ अभिलेख से प्रमाणित है कि वैश्य पुष्यगुप्त यहाँ के राज्यपाल थे।
चन्द्रगुप्त का अन्तिम युद्ध 305 ई.पू. सिकन्दर के पूर्व सेनापति तथा उनके समकालीन सीरिया के ग्रीक सम्राट
सेल्यूकस के साथ हुआ, चन्द्रगुप्त की शक्ति के सम्मुख सेल्यूकस को झुकना पड़ा था। श्रवणबेलगोला से मिले शिलालेखों के अनुसार, चन्द्रगुप्त अपने अन्तिम दिनों में भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोल चलें गए। वहीं उन्होंने उपवास द्वारा शरीर त्याग किया। चन्द्र- गुप्त अन्तिम मुकुट धारी मुनि हुए. उनके बाद और कोई मुकुट धारी (शासक) दिगंबर मुनि नहीं हुए। अतः चन्द्र-गुप्त का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है।
बिंदुसार ( 298 - 273 ईसापूर्व )
बिन्दुसार को पिता का पुत्र और पुत्र का पिता नाम से जाना जाता है क्योंकि वह प्रसिद्ध व पराक्रमी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र एवं महान राजा अशोक के पिता थे। बिन्दुसार को अमित्रघात, सिंहसेन, मद्रसार तथा वरिसार भी कहा गया है। और यह आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था। चन्द्रगुप्त मौर्य एवं दुर्धरा के पुत्र बिन्दुसार ने काफी बड़े राज्य का शासन संपदा में प्राप्त किया। बिन्दुसार के शासन में तक्षशिला के लोगों ने दो बार विद्रोह किया। पहली बार विद्रोह बिन्दुसार के बड़े पुत्र सुशीम के कुप्रशासन के कारण हुआ। दूसरे विद्रोह का कारण अज्ञात है पर उसे बिन्दुसार के पुत्र अशोक ने दबा दिया। सीरिया के सम्राट् से इसके राजत्व काल में भी मित्रता कायम रही। मेगस्थनीज़ का उत्तराधिकारी डाईमेकस सीरिया के सम्राट् का दूत बनकर बिंदुसार के दरबार में रहता था। प्लिनी के अनुसार मिस्र के सम्राट् टॉलेमी फ़िलाडेल्फ़स (285-247 ई. पू.) ने भी अपना राजदूत भारतीय नरेश के दरबार में भेजा था।
एथेनियस ने सीरिया के सम्राट् अंतिओकस प्रथम सोटर तथा बिंदुसार के पत्रव्यवहार का उल्लेख किया है। राजा अमित्रघात ने
अंतिओकस से अपने देश से शराब, तथा सोफिस्ट खरीदकर भेजने के लिए प्रार्थना की थी। उत्तर में कहा गया था कि हम आपके पास शराब भेज सकेंगे किंतु यूनानी विधान के अनुसार सोफिस्ट का विक्रय नहीं होता है।
अशोक (273-232 ईसापूर्व )
अशोक 273 ईसापूर्व में सिंहासन पर बैठा और 232 ईसापूर्व तक शासन किया। इसे 'देवप्रिय प्रियदर्शी' के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ था. ईश्वर का प्यारा ।अशोक ने 261 ईसापूर्व में कलिंग का युद्ध लड़ा। कलिंग आधुनिक उड़ीसा में है। अशोक के शिलालेखों को सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा था। कलिंग के युद्ध के पश्चात, अशोक बौद्ध हो गया. युद्ध के आतंक से विचलित होकर उसने बेरीघोष की जगह धम्मघोष मार्ग अपनाया। अशोक को बौद्ध धर्म का ज्ञान बुद्ध के एक शिष्य उपगुप्त या निग्रोध ने दिया था। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने धर्ममहामात्रों को नियुक्त किया।
अशोक के शिलालेख
1. अशोक के शिलालेखों में राज आजा थी जिसके जरिए वह जनता से सीधे संपर्क करने में सक्षम था। ये शिलालेख और स्तंभलेख थे जिन्हें दीर्घ और लघु में बांटा गया था।
2. अशोक के 14 मुख्य शिलालेख धर्म सिद्धांत के बारे में बताते हैं। 3. कलिंग शिलालेख कलिंग युद्ध के बाद प्रशासन के सिद्धांत की व्याख्या करता है। अपने कलिंग शिलालेख में, इसने जिक्र किया है 'सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं।
4. अशोक के मुख्य शिलालेख XII में कलिंग युद्ध का जिक्र किया गया है। 5. 'अशोक' का सर्वप्रथम उल्लेख केवल मास्की लघु शिलालेख में हुआ है।
अशोक और बौद्ध धर्म
अशोक ने 250 ईसापूर्व में अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में मोगलीपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में तृतीय बौद्ध संगति का आयोजन किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। अशोक ने श्रीलंका और नेपाल में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इसे बौद्ध धर्म के कॉसटेटाइन कहा जाता है।
श्रीलंका के शासक देवमप्रिय तिस्स अशोक के प्रथम बौद्ध धर्म धर्मांतरण थे। अशोक की धम्म नीति का व्यापक उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना था।
अशोक ने 40 वर्षों तक शासन किया और 232 ईसापूर्व में इसकी मृत्यु हो गई।
मौर्य प्रशासन
अत्यधिक केन्द्रीयकृत प्रशासनिक ढांचा । चाणक्य ने प्रशासन में सप्तांग सिद्धांत के 7 तत्वों का जिक्र किया है। राजा को मंत्रिपरिषद द्वारा सलाह दी जाती थी । विभिन्न प्रशासनिक क्रियाकलापों के लिए महत्वपूर्ण अधिकारी नियुक्त किए जाते थे।
प्रशासन चार इकाईयों में विभाजित था
- चक्र या प्रांत
- अहर या जिला
- संग्राहाना या गांवों का समूह
- गांव
नगरीय प्रशासन के अध्यक्षता करने वाले नगरक का उल्लेख अर्थशास्त्र में भी पाया जाता है
मौर्य कला
1) शाही कला - राजमहल, स्तंभ, गुफाएं, स्तूप आदि
2) लोकप्रिय कला - चित्रण मूर्तियां, टेराकोटा वस्तुएं.
मौर्यों ने व्यापक स्तर पर पत्थर राजगिरी की शुरुआत की थी। इन्होंने चट्टानों को खोदकर गुफाएं बनाने की शुरूआत की और बुद्ध और बोधिसत्व के पुरावशेष संग्रहित करने के लिए स्तूपों का निर्माण किया जिसका बाद में गुप्त वंश द्वारा विस्तार किया गया था।
भारतीय गणराज्य के प्रतीक को अशोक स्तंभ के चार शेरों से लिया गया है, जो सारनाथ में स्थित है। सांची से अन्य चार शेर. रामपुरवा और लौरिया नन्दनगढ़ से एक शेर और रामपुरवा से एक बैल और धौली में नक्काशीदार हाथी पाए जाते हैं।
मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्य सम्राट अशोक की मृत्यु के उपरान्त लगभग दो सदियों ( 322- 185 ई.पू.) से चले आ रहे शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य का विघटन होने लगा। अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी। इससे मौर्य साम्राज्य समाप्त हो गया।
पतन का कारण
- अत्यधिक केन्द्रीयकृत मौर्य प्रशासन
- अयोग्य एवं निर्बल उत्तराधिकारी,
- प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीयकरण,
- राष्ट्रीय चेतना का अभाव,
- आर्थिक एवं सांस्कृतिक असमानताएँ,
- प्रान्तीय शासकों के अत्याचार,
- . करों की अधिकता,
- अशोक की धम्म नीत
- अमात्यों के अत्याचार