मध्यप्रदेश में 1857 का विद्रोह । Revolt of 1857 in Madhyapradesh
मध्यप्रदेश में 1857 का विद्रोह । Revolt of 1857 in Madhyapradesh
नमस्कार दोस्तों उम्मीद करते है आप सभी अपनी अपनी परीक्षाओं की तयारी करवरहे होगें । आज हम आपको
मध्यप्रदेश में 1857 का विद्रोह । Revolt of 1857 in Madhyapradesh लेकर आए है ।
इस पोस्ट के मध्यम से हम लोग मध्यप्रदेश में 1857 का विद्रोह के बारे में जानेंगे।
1857 की क्रांति:-
- विद्रोह का प्रारंभ :- 29 मार्च 1857 को बंगाल की बैरकपुर छावनी में 34वीं बटालियन के सूबेदार मंगल पांडे ने रॉयल एनफील्ड रायफल का विरोध किया, और सार्जेण्ट ह्यूजसन और बो पर हमला कर दिया लेकिन शेख पलटू ने मंगल पांडे को पीछे से पकड़ लिया
- उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी दी गयी।
विद्रोह की योजना:-
- • सभी सैनिकों ने 31 मई 1857 का दिन विद्रोह के लिये निर्धारित किया, और अपना संदेश भेजने के लिये चपाती और कमल के फूल का प्रयोग किया।
- 9 मई 1857 को मेरठ के कुछ सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे मेरठ में 11वीं तथा 20वीं देशी पल्टन ने 10 मई 1857 को ब्रिदोह प्रारंभ कर दिया।
- ये सिपाही, 11 मई को दिल्ली पहुंचे और दिल्ली की 44वीं पल्टन के साथ मिलकर बहादुरशाह जफर द्वितीय को अपना नेता घोषित कर दिया।
म.प्र. में 1857 की क्रांति:-
नीमच :- म.प्र. में 1857 की क्रांति का प्रांरभ नीमच छावनी से 3 जून 1857 से हुआ कर्नल एबॉट ने सैनिकों को स्वामी भक्ति की शपथ के लिए कहा जिसे मोहम्मद अली बेग ने मना कर दिया । सुपरिन्टंडेंट लॉयड ने मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट सोबर्स की सहायता से विद्रोह का दमन किया
- झांसी :- 4 जून 1857 में झांसी में विद्रोह प्रारंभ हो गया।
- कैप्टन डनलप और एन्साइन टेलर की 8 जून 1857 को झोकनबाग में हत्या कर दी गई। कैप्टन स्कीन ने आत्मसमर्पण कर दिया ।
- झांसी के विद्रोह का बानपुर के राजा मर्दन सिंह और शाहगढ़ के राजा बखतवली ने साथ दिया।
सागर :-
- सागर ब्रिगेडियर सेजे के नेतृत्व में सभी अंग्रेजों ने 29 जून तक सभी अंग्रेजों ने सागर के किले तक शरण ले ली थी।
- नरयावली के युद्ध में 17 सितम्बर, 1857 को मर्दन सिंह ने एक युद्ध में ब्रिटिश सेना को करारी शिकस्त दी।
- सागर में विद्रोह का प्रारंभ पर 42वीं बटालियन के शेख रमजान और दुलमीर खाँ ने 1 जुलाई 1857 से किया जिसमें जबलपुर की 52वीं देशी पलटन ने सहयोग किया ।
- शेख रमजान को कालापानी की सजा दी गई उस समय पोर्ट ब्लेयर जेल के सुपरिटेंडेंट जेपी वॉकर थे जिन्होंने शेख रमजान को फांसी दे दी।
- बखतवली के सेनापति बौधन दौआ ने रहली, गढ़ाकोटा रियासत, देवरी के किले जीत लिए ।
- देवरी के किले का मुख्य प्रशासक चौधरी दुलके सिंह को बनाया इसके अतिरिक्त आशाजीत कुर्मी और गंजन सिंह गौंड भी देवरी की सुरक्षा में नियुक्त थे
भोपाल
- सागर का द्वार कहे जाने वाले राहतगढ़ में अंबापानी के नवाब भाईयों फाजिल मोहम्मद खान और आदिल मोहम्मद खान ने विद्रोह का नेतृत्व किया जिसे भोपाल की बेगम सिकंदर जहां बेगम ने दबाने का असफल प्रयास किया भोपाल में विद्रोह का नेतृत्व दो सैनिक अधिकारियों वली शाह एवं महावीर ने दो झण्डे - निशाने अहमदी तथा निशाने महावीरी लगाकर किया था तथा सिपाही बहादुर का गठन किया ।
- दमोह :- दमोह की हिंडोरिया रियासत में इस विद्रोह का नेतृत्व किशोर सिंह लोधी ने किया किशोर सिंह और राव साहब स्वरूप सिंह ने दमोह पर कब्जा कर लिया और दमोह थाने का नाम बखतवली के नाम पर कर दिया
- पन्ना के राजा नृपति सिंह ने श्यामलेजू के नेतृत्व में सेना भेजकर दमोह विद्रोह का दमन किया ।
- इसके अतिरिक्त धीरसिंह बघेल ने भी विद्रोह में भाग लिया ।
गढ़ा-मंडला:-
- जबलपुर के गढ़ा-मंडला के गाँड राजा शंकरशाह तथा उनके पुत्र रघुनाथ शाह ने विद्रोह प्रारंभ किया शंकर शाह ने युवावस्था में गोटिया दल का निर्माण किया था जो छापामार पद्धति के द्वारा अंग्रेजों पर हमला करता था
- गिरधारी शाह ने विश्वासघात करके शंकर शाह को गिरफ्तार करवा दिया ।
- कमांडर क्लार्क ने दोनों पिता-पुत्र को 18 सितंबर 1857 को तोप से उड़ा दिया।
- शंकरशाह की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी रानी फूल कुँवर ने मंडला में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया
मैहर :-
- मैहर राज्य की विजयराघवगढ़ रियासत (कटनी) के ठाकुर सरजू प्रसाद ने विद्रोह का नेतृत्व किया। उसके प्रमुख सेनापति सरदार रामबोल की मृत्यु के बाद रामबोल की पत्नी नयनी ने युद्ध का नेतृत्व किया ।
डिन्डोरी:-
- अवन्ति बाई का जन्म सिवनी जिले के मनकेही गांव में राव जुझार सिंह के यहां 16 अगस्त, 1831 को हुआ था।
- डिन्डोरी की रामगढ़ रियासत के राजा विक्रमजीत सिंह के खराब स्वास्थ्य के बाद तथा दोनों पुत्रों अमन सिंह, शेर सिंह के अस्वस्थ होने के कारण विक्रमजीत की पत्नी अवन्तिबाई ने शासन का भार संभाला।
- विक्रमजीत के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सही ना होने के कारण 13 सितंबर 1851 को रामगढ़ रियासत को अंग्रेजी रियासत में मिला लिया और शेख मोहम्मद को प्रशासक के तौर पर नियुक्त कर दिया
- यहां विद्रोह का नेतृत्व अवन्तिबाई ने शाहपुरा के ठाकुर विजय सिंह और सोहागपुर के ठाकुर गरुल सिंह के साथ मिलकर किया तथा खैरी के युद्ध में वाडिंगटन को हराया ।
- कैप्टन वार्डन ने रामगढ़ पर आक्रमण कर दिया और अंततः अवन्तिबाई वाडिंगटन से युद्ध में पराजित हो गई।
- अवन्ति बाई के सेनापति उमराव सिंह थे।
- अवन्ति बाई 20 मार्च 1858 को बालपुर नदी और उनकी सहायिका "गिरधारी बाई" वीरगति को प्राप्त हुई। डिन्डोरी जिले के शाहपुर के बालपुर ग्राम में अवन्तिबाई का बलिदान स्थल है ।
नरसिंहपुर:-
- नरसिंहपुर में रामगढ़ रियासत (राजधानी मदनपुर) के जमींदार ढिल्लन शाह ने विद्रोह का नेतृत्व किया ।
- गजाधर तिवारी को विद्रोह करने पर कैप्टन टर्नर ने तोप से उड़ा दिया गया और 52वीं पलटन के मेहरबान सिंह ने भी विद्रोह कर दिया ।
- होशंगाबाद के नेमावर में बाबासाहेब ने विद्रोह का नेतृत्व किया बैतूल में शिवदीन और रामदीन पटेल छिंदवाड़ा में मैकूलाल तथा बालाघाट में चिमना पटेल द्वारा विद्रोह किया गया जिसका दमन कैप्टन गार्डन ने किया ।
निमाड़ :-
- बड़वानी में खाज्या नायक और पुत्र दौलत सिंह नायक अमाल्यापानी के युद्ध में मारे गए । भीमा नायक (निमाड़ का रॉबिनहुड) के नेतृत्व में भीलों ने बड़वानी में विद्रोह किया ।
- भीमा नायक ने तात्या टोपे को नर्मदा नदी पार करने में सहायता की थी । आर.एच. केटिंग्स ने भीमा नायक को घावाबाबड़ी एवं पंचवावली नामक स्थान पर पराजित किया इसके पश्चात सीताराम कंवर तथा रघुनाथ मंडलोई ने बड़वानी में विद्रोह का नेतृत्व किया
रीवा:-
- रीवा में सूबेदार भवानी सिंह ने विद्रोह किया जगदीशपुर के कुंवर सिंह भी इसी समय रीवा पहुंचे लेकिन लेफ्टिनेंट ऑसबर्न ने उन्हें हरा दिया ।
- रीवा के राजा रघुराज सिंह ने अंग्रेजों की सहायता की
- बघेलखंड में विद्रोह का नेतृत्व अंग्रेजी सेना में कैप्टन व सतना जिले के मनकहरी ग्राम के निवासी रणमत सिंह ने किया और नागौद की अंग्रेजी रेजीडेन्सी और नौगांव छावनी पर हमला किया
- • हीरा सिंह ने रणमत सिंह को गिरफ्तार करवा दिया
- इसके अतिरिक्त धीरसिंह बघेल ने भी विद्रोह में भाग लिया ।
बुंदेलखण्ड:-
- टीकमगढ़ की रानी लड़ई सरकार ने भी अंग्रेजों का साथ दिया टीकमगढ़ के दीवान नत्थे खाँ ने झांसी पर आक्रमण किया परंतु पराजय का सामना करना पड़ा
- परीक्षित की विधवा और जैतपुर की रानी रजोरानी ने विद्रोह में भाग लिया ।
- बुंदेलखंड में महाराजा छत्रसाल के वंशज देशपत बुंदेला ने विद्रोह किया ।
- देशपत बुंदेला ने तात्या टोपे की सहायता के लिए एक हजार बंदूकची भी भेजे ।
- देशपत बुंदेला ने शाहगढ़ रियासत के फतेहपुर भी अधिकार कर लिया ।
- देशपत बुंदेला का मेजर बिटलॉक से झींझन गांव में युद्ध हुआ पन्ना के अजयगढ़ में फरजंद अली ने विद्रोह किया
इंदौर:-
- 1 जुलाई 1857 को इंदौर की महू छावनी में सआदत खाँ, भागीरथ सिलावट एवं वंश गोपाल ने विद्रोह आंरभ किया, जिसका इंदौर के राजा तुकाजीराव होल्कर ने अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया।
- सआदत खाँ ने फतेह मंसूर तोप का प्रयोग किया था ।
- इस समय इंदौर में ड्यूरेण्ड, ट्रैवर्स, हंगरफोर्ट, स्टाकतो लुडओ और "कैप्टन को" आदि अंग्रेज अधिकारी थे।
- महू में मुरादअली खां और रायपुर रियासत में नारायण सिंह ने विद्रोह प्रारंभ किया।
- 30 जुलाई को इंदौर की सेना राजगढ़ होते हुए ग्वालियर पहुंच गई । राजगढ की ब्यावरा रियासत के राजा अजीतसिंह ने विद्रोहियों का साथ दिया।
- ग्वालियर की सेना ने इंदौर की सेना का साथ देने से मना कर दिया, जिससे इंदौर की सेना आगरा के लिये प्रस्थान
- कर गई। भागीरथ सिलावट को देपालपुर में मोरवर्दी की पहाड़ी पर फांसी दे दी गई।
- विद्रोह पर नियंत्रण के लिये रॉबर्ट हैमिल्टन इंदौर में सेन्ट्रल इंडिया में गवर्नर जनरल का एजेण्ट बना
- धार:- धार की अमझेरा रियासत में बख्तावर सिंह ने विद्रोह प्रारंभ किया।
- बख्तावर सिंह को दीवान गुलाबराव ने धोखे से गिरफ्तार करवा दिया ।
उज्जैन:-
- उज्जैन की महीदपुर रियासत में शहजादा फिरोजशाह ने विद्रोह प्रारंभ किया।
- शहजादा फिरोजशाह धार में मालवा के युद्ध में पराजित हुए ।
- रतलाम की जावरा रियासत में अब्दुल सत्तार खान ने विद्रोह प्रारंभ किया और मंदसौर के शहजादे फिरोज के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध मंदसौर और गुराड़िया का युद्ध लड़ा ।
ग्वालियर:-
- मैकफरसन के कहने पर जयाजीराव सिंधिया ने विद्रोह में भाग नहीं लिया, और अपने दीवान दिनकर राव के साथ आगरा चले गये।
- जयाजीराव सिंधिया की दादी बैजाबाई उज्जैन में रहकर बाबा आप्टे आदि क्रांतिकारियों की सहायता कर रही थी
- महारानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे की सम्मिलित सेना ने ग्वालियर पर विजय प्राप्त करने के उपरांत जयाजीराव
- सिंधिया के कोषाध्यक्ष अमरचंद बांठिया को बुलाकर गंगाजली के कोष से कुछ धनराशि की मांग की। अमरचंद बांठिया ने खजाने की चाबियाँ राव साहब को सौंप दी।
- 18 जून 1858 को महाराजा सिंधिया ने अंग्रेजों की सहायता से ग्वालियर लौटकर अमरचंद बांठिया को 22 जून 1858 को फांसी की सजा सुना दी।
सेण्ट्रल इंडिया फोर्स :-
- ह्यूरोज के नेतृत्व में महू में सेण्ट्रल इंडिया फोर्स का गठन किया गया, जिसकी एक टुकड़ी स्टुअर्ट के नेतृत्व में गुना होते हुए ग्वालियर पहुंची जबकि दूसरी टुकड़ी ह्यूरोज के नेतृत्व में सागर होते हुए झांसी पहुंची। दूल्हाजू ने गद्दारी करते हुए ओरछा के दरवाजे ह्यूरोज के लिए खोल दिए ।
- मई 1858 में ह्यूरोज ने झांसी और कालपी को जीत लिया।
- झांसी की रानी 1 जून 1858 को ग्वालियर पहुंची।
- झांसी की रानी की सहेली झलकारी बाई थी।
- ह्यूरोज, भी 14 जून 1858 को ग्वालियर पहुंचा। 18 जून को झांसी की रानी वीरगति को प्राप्ति हो गई ।
- लक्ष्मीबाई ने मरते समय अपने बेटे दामोदर राव को काशीबाई को सौंप दिया जो आगर मालवा में बस गई बखतवली और मर्दन ने थरेण्टन के समक्ष समर्पण कर दिया । इन दोनों राजाओं को लाहौर ले जाकर हकीम राय की हवेली में नजरबन्द रखा गया। बाद में बखतवली को मथुरा आने की अनुमति मिली। 7 अप्रैल 1859 को नरवर के जमीदार मानसिंह ने विश्वासघात करके तात्याटोपे को गिरफ्तार करवा दिया।
- 18 अप्रैल 1859 को तात्या टोपे को फांसी दी गयी जिससे 1857 का विद्रोह समाप्त हुआ। भिण्ड में दबोह के दौलत सिंह दतिया में सेवड़ा के राव खलक सिंह देवास की राघोगढ़ रियासत के दौलत सिंह ने भी विद्रोह में भाग लिया था ।
- ग्वालियर के महादेव शास्त्री को नाना साहब की सहायता के लिए फाँसी दे दी गई ।
नोट:-
पचमढ़ी में भभूत सिंह ने तात्या टोपे का साथ दिया भभूत सिंह को नर्मदांचल का शिवाजी कहा जाता है
1857 के पश्चात् म.प्र. में स्वतंत्रता आंदोलन:-
- 1888 में स्वामी श्रद्धानंद ने गौ-रक्षण सभा की स्थापना की। 1888 में गंगाधरराव चिटनिस ने नागपुर में लोकसभा नामक संस्था की स्थापना की।
- 1891 में आनदाचार्य की अध्यक्षता में कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन हुआ 1905 में भारत के प्रधान सेनापति लॉर्ड किचनर ने छतरपुर के नौगांव छावनी में मिलिट्री स्कूल (किचनर कॉलेज) प्रारंभ
- किया था जिसमें रियासतों के राजाओं तथा जागीरदारों के पुत्रों को सैन्य शिक्षा प्रदान की जाती थी
- मध्यप्रांत के चीफ कमिश्नर इंड्रयू फ्रेजर ने बंगाल विभाजन का सुझाव दिया था । 1905 में बंगाल विभाजन के पश्चात सी.पी. और बरार प्रांतीय सभा की स्थापना की गई जिसके प्रथम अधिवेशन केअध्यक्ष दादा साहब खापर्डे थे जिन्हें डिप्टी तिलक कहा जाता था
- 1907 मे रायपुर अधिवेशन में वंदे मातरम् का विरोध डॉ. हरिसिंह गौर तथा मुघोलकर आदि नरमपंथियो ने किया
- 1919 के अधिनियम के अनुसार चुनाव होने पर गंगाधरराव चिटनवीस को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था।
दोस्तों उम्मीद है आपको आज की हमारी ये पोस्ट पसंद आयेगी ।।
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