सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल / indus valley civilisation - Pratiyogitamitra
सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल / indus valley civilisation - Pratiyogitamitra
रेडियोकार्बन 14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है। इसका विस्तार त्रिभुजाकार है।
नोटः तिथि निर्धारण की कार्बन-14 (C14) की खोज अमेरिका के प्रसिद्ध रसायन शास्त्री वी. एफ. लिवि द्वारा 1946 ई. में की गयी थी।
इस पद्धति में जिस पदार्थ में कार्बन-14 की मात्रा जितनी ही कम रहती है, वह उतनी ही प्राचीन मानी जाती है।
सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने की।
सिन्धु सभ्यता को आद्य ऐतिहासिक (Protohistoric) अथवा कांस्य (Bronze) युग में रखा जा सकता है। इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्यसागरीय थे।
सर जान मार्शल (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन महानिदेशक) ने 1924 ई. में सिन्धु घाटी सभ्यता नामक एक उन्नत नगरीय सभ्यता पाए जाने की विधिवत घोषणा की।
सिंधु सभ्यता का परिचय :-
भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फैली हुई थी, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।
1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की ।
सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल :-
सिंधु घाटी सभ्यता के सात महत्वपूर्ण शहर है।
- हड़प्पा
- मोहनजोदड़ो
- कालीबंगा
- लोथल
- चन्हुदरु
- धोलावीरा
- बनावली
हड़प्पा :-
इसकी खोज सन 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी। यह नगर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में राबी नदी के तट पर स्थित है। इस शहर में मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियां , अन्नागार, बैलगाड़ी आदि बस्तुए प्राप्त हुई थी । यही से पक्की ईंटों से निर्मित 18 ब्रताकार चबूतरे मिले है जिनके मध्य में एक गड्ढा है । गेहूं और जों एवं राख के साक्ष्य मिले है।
यह नगर दो खंडों में विभक्त था, पश्चिम में दुर्ग क्षेत्र एवं पूरब में निचला नगर था।
* दुर्ग क्षेत्र से बाहर उत्तर में एक टीले के उत्खनन से कुछ महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं जैसे-
1. मजदूरों को रहने के लिए श्रमिक बस्ती-कुल 15 मकान प्राप्त हुए हैं।
2. इसी के पास से 16 भट्ठियाँ प्राप्त हुई हैं जिसमें कोयले और कंडे की राख मिली हैं। पुराविदों ने इसे ताँबा गलाने का कारखाना माना है।
3. यहीं से पकी ईंटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं जिनके मध्य में एक गड्डा है। गड्ढे में गेहूँ जौ एवं राख के साक्ष्य मिले हैं।
मोहनजोदड़ो :-
इसे मृतकों का टीला भी कहा जाता है । इसे 1922 ने राखल दस बनर्जी ने खोजा था । यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लटकन जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है । इस शहर से विशाल स्नानागार, अन्नागार, कांस्य की नर्तकी की मूर्ति, पशुपति महादेव की मुहर, दाढ़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति , बने हुए कपड़े आदि वस्तुएं प्राप्त हुई थी ।
मोहनजोदड़ो-मोहनजोदड़ो का नगर दो खंडों में विभक्त था। पश्चिम में दुर्ग क्षेत्र एवं पूरब में निचला नगर। दुर्ग क्षेत्र से अनेक सार्वजनिक इमारतें प्राप्त हुई हैं-
1. विशाल स्नानागार- यह पकी ईंटों से निर्मित सिन्ध सभ्यता की सबसे सुन्दर कृति है। यह पूरी इमारत 180 फीट लम्बी एवं 108 फीट चौड़ी है।
इसके मध्य में एक तालाब है जिसका आकार 11.89 मी. लम्बा 7.01 मी. चौड़ा 2.43 मी. गहरा है।
तालाब में तल तक पहुँचने के लिए उत्तर तथा दक्षिण
दिशा में सीढ़ियाँ बनी थी।
* तालाब के दक्षिण पश्चिम में एक नाली थी जिसमें से तालाब का गन्दा पानी बाहर निकाला जाता था।
2. विशाल अन्नागार-यह अन्नागार 45.71 मीटर लम्बा
22.86 मीटर चौड़ा है। अन्नागार के उत्तर में एक चबूतरा बनाया गया है। अन्नागार में कुल 27 प्रकोष्ठ बने हैं। सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा अन्नागार है।
पुरोहित आवास-विशाल स्नानागार के पास से एक विशाल इमारत का प्रमाण मिला है जो 70.1 मीटर लम्बा एवं 23.77 मीटर चौड़ा है।
कालीबंगा :-
जानकारों के मुताबिक कालीबंगा एक छोटा नगर था। इसे 4000 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन नगर माना जाता है। इसकी खोज घोस ने 1953 ने की थी ।यह स्थान राजस्थान में घग्घर नदी के किनारे पर स्थित है। इस नगर से अग्नि बेदिकाएं , ऊंट की हड्डियां , लकड़ी का हल आदि बस्तूए प्राप्त हुई थी।
यह नगर दो खंडों में विभक्त है पश्चिम में दुर्ग क्षेत्र एवं पूरब में निचला नगर। यहाँ से सिन्धु सभ्यता के नीचे पूर्व सैंधव संस्कृति के प्रमाण मिलते हैं।
यहाँ का दुर्ग क्षेत्र एवं निचला नगर दोनों अलग- अलग रक्षा प्राचीर से घिरा था। यहाँ के एक फर्श से अलंकृत ईंट का साक्ष्य मिला है। यहाँ से आयताकार अग्निवेदिकायें प्राप्त हुई हैं।
लोथल :-
इसको 1954 में एस. आर. राव ने खोजा था ।यह स्थान गुजरात अहमदाबाद में स्थित है। लोथल से अन्ना गार , गुरिया मानका बनाने का कारखाना , रंगाई कुंड , गोंडीबाड़ा, हाथी दांत से निर्मित पैमाना , अग्निवेदिकाए ,पत्थर से निर्मित वृत्ताकार चक्की के दो पाट गोरिल्ला की मूर्ति जैसी बस्तूए प्राप्त हुई थी।
लोथल-इसे लघु हड़प्पा एवं लघु मोहनजोदड़ो कहा
जाता है। लोथल नगर के पश्चिम में दुर्ग क्षेत्र एवं पूरब में निचला नगर था। यहाँ का दुर्ग क्षेत्र एवं निचला नगर एक ही रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ था।
लोथल से गुरिया मनका बनाने का कारखाना मिला है। यहीं से एक रंगाई कुंड का प्रमाण मिला है।
चन्हुदड़ो :-
1931 में एन. जी. मजूमदार ने इसे खोजा था । यह सिंधु नदी के तट पर सिंध प्रांत में स्थित है। यहां से मनके गुरिया बनाने की दुकानें , बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पद चिन्ह प्राप्त हुए है।
धोलावीरा :-
यह स्थान गुजरात के कच्छ में स्थित है इसकी खोज 1985 में आर एस बिष्ट ने की थी । इस स्थान पर जल निकासी प्रबंधन और जल कुंड प्राप्त हुए है।यह भारत में स्थित सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है। धौलाबीरा अन्य नगरों को योजना से भिन्न बसाया गया है। यहां से 16 जला शयों का प्रमाण मिलता है । यहीं से स्टेडियम एवं सूचना पट्ट का प्रमाण मिलता है।
बनावली :-
इसकी खोज आर एस बिष्ट ने ्1974 को की थी यह हरिया के हिसार जिले में स्थित है । यहां से मनके , जौ ,हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त होते है।
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, बनावली और धोलावीरा चार प्रमुख हड़प्पा स्थल माने जाते हैं। साल 1999 तक यहां 1,056 से अधिक शहर और बस्तियां ढूंढी जा चुकी थी। इसके लिए सिंधु और घग्घर-हकरा नदियों और उनकी सहायक नदियों के क्षेत्र में 96 स्थलों की खुदाई की गई थी। इस दौरान हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा और राखीगढ़ी सबसे महत्वपूर्ण शहरी केंद्र थे।