मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियां । Tribes of Madhya Pradesh in hind (गोंड, बैगा, भील, कोल, कोरकू सहारिया, अगरिया,भारिया,पनिका और बंजारा जनजाति)

मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियां । Tribes of Madhya Pradesh in hind. (गोंड, बैगा, भील, कोल, कोरकू सहारिया, अगरिया,भारिया,पनिका और बंजारा जनजाति)

मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियों का विवरण ।
 Madhyapradesh ki janjatiyan

दोस्तों आज हम अपनी नई पोस्ट में मध्य प्रदेश में पाई जाने वाली विभिन्न जनजातियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
जो मध्य प्रदेश और देश में होने वाले किसी भी एग्जाम के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

गोंड जनजाति


1) भौगोलिक वितरण -यह मध्य प्रदेश को दूसरी व भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। यह जनजाति मध्य प्रदेश के सभी जिलों में निवास करती है, लेकिन मुख्यरूप से इनका निवास स्थान नर्मदा के दोनों ओर विन्ध्य व सतपुड़ा क्षेत्र में है।

जिले- बैतूल, छिंदवाड़ा, बालाघाट, शहडोल, मण्डला, सागर, दमोह आदि। 
2) उत्पत्ति - गोंड शब्द की उत्पत्ति तेलुगू भाषा के शब्द कॉड से हुई है, जिसका अर्थ है पहाड़ या पर्वत। चूंकि ये लोग पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते हैं, इसलिए इन्हें गोंड कहा जाता है।

3) शरीरिक बनावट - गॉड द्रविड़ियन मूल के हैं। सामान्यतः गोंड छोटे कद, गहरे काले रंग, मोटे होठ, बड़ी व चपटी नाक चोड़े मुंह तथा सीधे बाल वाले होते हैं।

4) पहनावा -यह वस्त्रों का कम प्रयोग करते हैं। पुरूष छोटा सा कपड़ा टांगों को ढकने के लिए तथा महिला साड़ी, आभूषण, तथा गुदनाप्रिय होती हैं। यह पीतल, मूंगा, मोती के भी आभूषण भी पहनते हैं, लेकिन आजकल आधुनिक वस्त्रों का भी प्रयोग करने लगे हैं। श्रृंगार के लिए ये लोग मोर पंख, जानवर के सींग आदि का भी प्रयोग करते हैं।

5) सामाजिक संरचना- यह पितृसत्तात्मक समाज होता है। गोंड गांव में संयुक्त परिवार कम देखने को मिलते हैं। ये अपने परम्परागत रीति-रिवाजों में कट्टर होते हैं। गोंडों में सामान्यतः दो वर्ग पाए जाते हैं राज गाँड तथा धुर गीड़। राज गोड भू-स्वामी होते हैं, जबकि धुर गोंड साधारण लोग होते हैं।

6 ) विवाह- ये लोग समान्यत: एक विवाह करते हैं, परन्तु कहीं-कहीं इनमें बहुविवाह, विवाह विच्छेद तथा पुनर्विवाह भी होता लमसेना विवाह, पढोनी विवाह। है। ये लोग समगोत्रीय विवाह नहीं करते हैं। इनमें अनेक प्रकार के विवाह प्रचलित है, जैसे दूध लौटाया, चढ़ विवाह,
ये लोग सहमति विवाह को सबसे उचित मानते हैं। इसके अलावा पलायन विवाह, जिसे लमसेना विवाह भी कहा जाता है. भी पाया जाता है। इस जनजाति में वधू मूल्य का प्रचलन अत्यधिक है। गॉड जनजाति में भाई का लड़का और बहन की लड़की अथवा भाई की लड़की और बहन का लड़का में भी विवाह का प्रचलन है, जिसे ये लोग दूध लौटावा भी कहते हैं। 

7) पर्व-त्योहार- इस जनजाति के प्रमुख त्योहार पोटूल, जयास मड़ई मेघनाथ आदि हैं।

8) नृत्य - गॉड जनजाति के प्रमुख नृत्य करमा, सेला, सुआ, विरहा आदि है। 
9) रहन सहन- गॉड शाकाहारी व मांसाहारी दोनों होते हैं। भोजन में अनाज व कंदमूल शामिल होते हैं। पेज इनका प्रिय भोजन है। 
10) आर्थिक जीवन - गोडों का प्रमुख आर्थिक स्त्रोत कृषि  होता है  इसके अलावा कंदमूल, आखेट आदि का भो प्रचलन है।

 11) धार्मिक जीवन -इनमें टोटमवाद का अत्यंत अत्यंत महार्ण स्थान है। इसके अलावा प्राचीन देवी-देवताओं और आत्मा की भी पूजा करते हैं बुड़ादेव इनके प्रमुख देवता है हिंदू धर्म के प्रभाव के कारण शिव, हनुमान आदि की भी पूजा करते हैं तथा जादूटोना भी करते हैं इस तरह को तांत्रिक क्रियाओं को करने के लिए एक विशेष व्यक्ति होता है, जो ओझा कहलाता है।

12) प्रमुख उपजातियां

a) अगरिया -लोहे का काम करने वाला वर्ग।
b) प्रधान- पूजा पाठ करने वाला
c) ओझा- तांत्रिक क्रियाएं करने वाला पंडित।
d) कोयला- भूतिस नाचने गाने वाला
e) सोलाहस -बढ़ईगिरी का काम करने वाला वर्ग।

13) अन्य विशेषताएं

a) गांव का मुखिया गोटिया कहलाता है।

b) गोंडों की प्रमुख भाषा गोंडी है।

c) पारम्परिक रूप से किसान हल इनका प्रतीक है।

d) अतिथि सत्कार का विशेष महत्व होता है, जिसके लिए एक साफ-सुथरा कमरा बनाया जाता है।

c) गोड जनजाति का शिक्षा स्तर बढ़ने लगा है। साथ ही ये सरकारी नौकरियों तथा राजनीति में भी आने लगे हैं।

बैगा जनजाति


1) भौगालिक वितरण - बैंगा मध्य प्रदेश की एक अति पिछड़ी जनजाति है, जो मध्य प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में निवास करती है।
  जिले -मंडला, डिण्डोरी, बालाघाट, सीधी, शहडोल आदि।

2) शारीरिक बनावट - कद मध्यम ऊँचा, शरीर सुगठित, नाक चपटी, रंग काला, बाल सोधे। 

3) पहनावा -पुरूष संगोटो तथा सिर पर साफा बांधते हैं तथा स्त्रियां धोती पहनती हैं। साथ ही आभूषण व गुदना शरीरिक साज-सज्जा के मुख्य साधन माने जाते है। डॉ. एल्विन ने इन्हें अत्यंत हँसमुख और विशिष्ट समूह के रूप में वर्णित किया है।

4) सामाजिक संरचना - बैगा समाज पितृसत्तात्मक होता है। गांव का मुखिया मुकदम कहलाता है। 

5) विवाह प्रथा- इनमें समगोत्रीय विवाह नहीं होता है। इनमें गोत्र प्रथा चलती है। ये उस गोत्र में भी विवाह नहीं करते, जहां समान देवी देवताओं को पूजा जाता है। विधवा को अपने देवर से विवाह करना पड़ता है। तलाक के लिए पती-पत्नी दोनों को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। दोनों का एक साथ एक तिनका तोड़ना तलाक का सूचक माना जाता है। बाल-विवाह नहीं होता है। बैगा जनजाति में 6 प्रकार के विवाह पाए जाते हैं मंगनी चढ़ विवाह, उठया विवाह, चोर विवाह, लमसेना विवाह,उधरिया विवाह एवं पैठूल विवाह। 

6) नृत्य - ये लोग नृत्य करते समय जंगली जानवरों के मुखौटों का प्रयोग करते हैं। इनके प्रमुख नृत्य करमा फाग, सैला, परधौनी आदि है।

7 ) रहन सहन- इनके मकान 6-7 फुट ऊँचे बांस तथा मिट्टी के बने होते हैं। छत का। निर्माण घास व पत्तियों से किया जाता है। इनमें बासी भोजन की परम्परा है। ये लोग मोटे अनाज के घोल नमक डालकर एक पेय पदार्थ तैयार करते है, जिसे पेज कहा जाता है। मृतकों को प्राय: दफनाया जाता है। इनके सामाजिक जोवन में मदिरा का विशिष्ट स्थान है।

8) आर्थिक जीवन- बैगा लोग हल से खेत नहीं जोतते, क्योंकि उनका मानना है कि इससे धरती माता को छाती पर प्रहार होता है। अत: ये लोग स्थानांतरित कृषि करते हैं, जिसे बेबार कहा जाता है। वर्तमान में यह कृषि पद्धति प्रतिवधित है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने स्थानांतरित कृषि हेतु मंण्डला, शहडोल, सीधी में अनुमति दी है। आखेट व मत्स्यन, कंदमूल, शहद तथा औषधियों को बाजार में बेचकर जीवनयापन करते हैं

9) धार्मिक जीवन - बैगाओं के प्रमुख देवता बूढादेव हैं. जो साल वृक्ष पर रनिवास करते हैं। इन्हें मुर्गे, नारियल व मदिया चढ़ाई जाती है। इनके अन्य देवता ठाकुर देव (भूमि को देवता), दूल्हा देव। आदि है।

भील जनजाति


1) भौगोलिक वितरण - भील जनजाति भारत की तीसरी तथा मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है जिसका मुख्य निवास स्थान पश्चिमी मध्य प्रदेश है
 जिले-  झाबुआ ,अलीराजपुर ,धार ,खण्डवा, खरगौन, रतलाम, नीमच आदि। इसके अतिरिक्त यह जनजाति महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात में भी पाई जाती है।

2) उत्पत्ति- यह अपनी उत्पत्ति शिव भगवान से मानते हैं। भील शब्द तमिल भाषा के शब्द विल्लुवर से बना है, जिसका अर्थ धनुष-कमान होता है, इसलिए भील लोग धनुर्धारी होते हैं।

3) शारीरिक बनावट - इनका सामन्य मनुष्य को अपेक्षा कर छोटा, आंखें बड़ी, माथा चौड़ा तथा बाल घुंघराले होते हैं। भील जनजाति के लोग अन्य जनजातियों की तुलना में अधिक सुंदर होते हैं।

4) पहनावा - पुरुष आधी बाँह की कमोज, सिर पर साफा, धोती तथा स्त्रियां घांघरा-चोली, ओड्नी पहनती हैं। ये लोग गुदनाप्रिय
होते हैं तथा आभूषण भी पहनते हैं। भीलों अपने साथ प्राय: दर्पण तथा कंघी हमेशा रखते हैं।

5) सामाजिक संरचना - भील पितृसत्तात्मक परिवार होता है। गांव का मुखिया तड्वी कहलाता है। भील जहां रहते हैं, उसे फाल्या कहा जाता है। 
भीलों की प्रमुख उपजातियां भिलाला, पटेरिया, बरेला, बैंगास आदि हैं। )

6)विवाह - भीलों में एकल तथा बहुल दोनों प्रकार के विवाह पाए जाते हैं, जिनमें गंधर्व विवाह, अपहरण विवाह, सेवा विवाह प्रमुख होते हैं। सेवा विवाह में वधू मूल्य चुकाना होता है। भीलों में एक प्रणय पर्व होता है, जिसे भगोरिया हाट कहते हैं,जिसमें जीवनसाथी का चुनाव किया जाता है। भीलों में गोल गधेड़ा विवाह का एक दिलचस्प प्रकार होता है, जो एक लोक नृत्य के रूप में आयोजित होता है।

7) आर्थिक जीवन -भील मुख्यतः कृषि, मजदूरी तथा पशुपालन करते हैं, परन्तु इस जनजाति में गरीबी अधिक होने के कारण यह इसमें अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ गई है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण तथा उत्सवों पर अधिक खर्च के कारण ये लोग प्रायः ऋणगस्त होते हैं। धनुष-बाण भीलों का परम्परागत शस्त्र है। साथ ही तलवार, गुलेल आदि का भी प्रयोग करते

8) धार्मिक जीवन - भील आत्मवाद में विश्वास करते हैं। भीलों पर हिन्दू संस्कृति का प्रभाव होने के कारण ये भगवान राम, गणेश तथा हनुमान को भी मानते हैं। यह घोड़े तथा सर्प की पूजा करते हैं।

9) अन्य विशेषताएं

a) इनकी भाषा भीली है, जो राजस्थानी, गुजराती और मराठी का मिश्रण है।

b) ये लोग होली, दोवालौ, दशहरा त्योहार मनाते हैं।

c) ये लोग होली के अवसर पर गोल गधेडा उत्सव मनाते हैं।

d) इनका प्रिय खाद्य पदार्थ राबड़ी है तथा महद्य पान के रूप में ताड़ी का प्रयोग करते हैं।

कोल जनजाति


1 ) भौगोलिक क्षेत्र- कोल जनजाति का प्रमुख निवास स्थान उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश है।

जिले - रोवा, ग्रेटर नोएडा, सीधा, सहडोल, जबलपुर आदि।

2) उत्पत्ति - कोले भारत की प्राचीनतम् जनजातियों में से एक है, जिसे मुण्डा समूह की जनजाति से भी प्राचीन मानी जाती है।
ऋग्वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में भी इस जनजाति का उल्लेख मिलता है। कोल शबरी को अपनी मां मानते हैं। 

3) शारीरिक बनावट- इनका रंग काला, कद मध्यम, होंठ मोटे, माथा उभरा, बाल काले होते हैं।

4) वेशभूषा- पुरुष धोती-कुर्ता, सिर पर साफा, दुपट्टा तथा स्त्रियां धोती पहनती हैं। ये लोग आभूषण तथा गुदनाप्रिय होते हैं। कोल जनजाति अन्य जनजातियों की तुलना में पूरे वस्त्र धारण करती है तथा श्रृंगार पर विशेष ध्यान देते हैं।

5) सामाजिक संरचना- कोल समाज पितृसत्तात्मक होता है।  इसके दो उपवर्ग  है  रौतिया एवं रौतेले । इनकी अपनी पंचायत होती हैं जिसे गोहिया कहा जाता है। गांव का मुखिया चौधरी कहलाता हैं।

6) विवाह प्रथा- कोल जनजाति में एकल विवाह के साथ-साथ बहु  विवाह की भी प्रथा है। इनमें होने वाले विवाहों में मंगनी विवाह सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसके अतिरिक्त रजाबाजी विवाह,विधवा विवाह, पुनर विवाह आदि होते हैं

7) पर्व -त्यौहार- ये लोग हिंदू धर्म के ही अधिकांश त्योहारों को मनाते हैं, जैसे हरियाली अमावस्या, नागपंचमी, तीजा, जन्माष्टमी, होली, दोषावाली, दशाहेरा, नवरात्रि आदि।

8) रहन सहन-यह हिन्दू रीति-रिवाज से जोवन व्यतीत करते हैं। ये गांव के नजदीक, खुले में टोली बनाकर रहते हैं, जिसे कोल्हनटोल कहा जाता है। कोल लोग संगीत के शौकीन होते हैं तथा इनके घरों में अनेक वाद्य यंत्र पाए जाते हैं।

9) आर्थिक संरचना- कोल अधिकांशतः मजदूर, कृषि तथा पशु पालन का कार्य करते हैं।

10) धार्मिक संरचना - कोल हिन्दू प्रभाव के कारण हिन्दू देवी-देवताओं की अराधना करते हैं। फसलों की रक्षा के लिए सूर्य, चन्द्रमा, पवन, इन्द्र के साथ-साथ गंगा, यमुना आदि नदियों की भी पूजा करते हैं। इनके प्रमुख देवता दूल्हादेव, वैरमदेव तथा बड़ेदेव हैं। यह भूत-प्रेत तथा जादूटोने में भी विश्वास करते हैं एवं बौमारियों का इलाज परम्परागत ढंग से करते हैं। मृत्यु पर शव को दफनाने व जलाने दोनों की प्रथा है।
11) बोली - कोल जनजाति के लोग मुण्डा बोली बोलते हैं, लेकिन इन्होंने अपनी मूल बोली को भूलकर बघेली बोली को अपना लिया है।

कोरकू जनजाति


1) भौगोलिक क्षेत्र - कोरकू, कोल जनजाति की ही एक शाखा है। कोरकू शब्द का अर्थ है मनुष्यों का समूह। 
Kon
जिले बैतूल, छिंदवाड़ा, खण्डमा, खरगोन, बुरहानपुर आदि।

2) उत्पत्ति - ये अपनी उत्पत्ति राजपूत वर्ग से मानते हैं।

3) शारीरिक बनावट - इनका रंग काला, कद मध्यम, नाक चौड़ी, होठ मोटे, शरीर हच्छ- पुष्ठ, बाल काले होते हैं।

4) पहनावा -पुरुष धोती, सिर पर अगोद्धा एवं स्त्रियां पांघरा-चोली, रंग बिरंगी धोती पहनती हैं। ये लोग चांदी, पीतल, कांसा
आदि धातुओं के आभूषण तथा मोतियों की माला पहनते हैं। कोरकू शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों होते हैं। पेट भरने के लिए लचका जैसे पतले खाद्य का उपयोग करते हैं।

5 ) सामाजिक संरचना- कोरकू पितृसत्तात्मक होते हैं। इनका सामाजिक संगठन हिन्दुओं से प्रभावित होता है।

6) विवाह - कोरकू जनजाति के प्रमुख विवाह लमसेना, राजी-वाजी, प्रेम विवाह, हठ विवाह, तलाक में विधवा विवाह आदि

7) पर्व-त्योहार - ये लोग प्राय: हिन्दू धर्म के ही त्योहार मनाते हैं, जैसे दशहरा, दीपावली, होली, जिराती, गुड़ी पड़वा, माप दशहरा आदि।

6) आर्थिक संरचना - इन लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि, पशु पालन, वनोपज, मत्स्यन एवं आखेट होता है। यह आखेटन में निपुण होते हैं तथा समूह में आखेट करते हैं। यह जनजाति आर्थिक रूप से पिछड़ी जनजाति है।

7) धार्मिक संरचना- कोरकू हिन्दू धर्म से प्रभावित है। यह महादेव, चन्द्रमा व मेघनाथ की पूजा करते हैं। यह जादूटोना तथा तंत्र-मंत्र पर विश्वास करते हैं। इनमें मृतकों को दफनाया जाता स्मृत्ति में लकड़ी का एक स्तंभ गाढ़ते हैं। 

8) अन्य विशेषताएं

a) ऐसे कोरकू जो भू-स्वामी होते हैं, उन्हें राज कोरकू तथा शेष को पोथरिया कोरकू कहा जाता है। 


b) कोरकूओं के मकान आमने-सामने पक्ति यद्ध होते हैं। यह प्राय: घास, बांस, लकड़ी तथा मिट्टी के बने होते हैं।

d) कोरकू की 4 उपजातियां पोथरियां, रूमा, दुलारया तथा बोयई हैं।

 सहरिया जनजाति


1) भागॉलिक क्षेत्र - सहरिया उत्तर-पश्चिम मध्य प्रदेश को अत्यंत पिछड़ी अबूजति है। मध्य प्रदेश सरकार ने इसे पिछड़ी जाति
घोषित किया है। इनका मूल स्थान शाहबाद का जंगल हैं, जो फोटा यूतस्यान से गुना तक विस्तृत है। 
जिले- भिण्ड मुरैना, ग्वालियर, शिल्पगुना, रायसेन, विदिशा, सीहोर आदि।

2) शरीरिक संगठन - इनका रंग सांवला कद मध्यम शारीरिक रूप से दुर्वल तथा कमजोर होते हैं, जिसका प्रमुख कारण इनके द्वारा किया जाने वाला शराब का अत्याधिक सेवन है।

3) सामाजिक संरचना- परिवार को मुखिया पटेल कहलाता है। पटेल का मुख्य कार्य धार्मिक सामाजिक कार्यों का सम्पादन, पंच निर्णय सुनाने, दण्ड वसूली, सगाई वव्याह में सहयोग आदि होते हैं। सहरिया कतारबद्ध मकानों की श्रृंखला बनाकर रहते
हैं, जिसे सहराना कहते हैं। सहरिया अपने को भीलों का छोटा भाई कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। 
 
5)विवाह -इनके विवाह सामान्य प्रथाएं पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त तलाक व विधवा विवाह भी मान्य हैं।

6) पहनावा - पुरुष धोती, रंगीन कमीज, साफा एवं स्त्रियां लहगा, पांघरा आदि पहनती हैं। ये आभूषण का प्रयोग भी करते हैं।
इनकी पहनावे पर राजस्थानी वेशभूषा का प्रभाव दिखाई देता है।
 
7) आर्थिक संरचना- ये प्रायः भूमिहीन होते हैं, जिनके प्रमुख व्यवसाय कृषि मजदूरी, वनोपज, मत्स्य पालन, शिल्प है। इनकी
आर्थिक स्थिति दयनीय तथा परिवार ऋणगस्व होते हैं। यह शाकाहारी व मांसाहारी दोनों होते हैं। शिकार करना सहरियाओं का पारम्परिक शौक होता है।

8) धार्मिक संरचना - ये हिन्दू धर्म को हो मानते हैं। ये लोग ब्रह्मा, शिव, विष्णु की पूजा करते हैं तथा सूर्य-चन्द्र, जल, वायु, अग्नि आदि देवताओं में भी विश्वास करते हैं। इनमें शव को जलाया जाता है तथा मृत्यु होने पर घर में सूतक हो जाता है।

9) पर्व-त्योहार -ये हिन्दू धर्म के समान ही दशहरा, दीपावाली, होली, रक्षाबंधन, नवरात्रि आदि को त्योहार मनाते हैं। यह जादूटोना, भूतप्रेत, तंत्रमंत्र आदि को मानते हैं।

अगरिया जनजाति


1) भौगोलिक क्षेत्र- यह मध्य प्रदेश को आदिम एवं अत्यंत पिछड़ी जनजाति है, जिसका निवास स्थान दक्षिण-पूर्वी मध्य प्रदेश है। सर्वप्रथम लोहा खोजने एवं उससे उपयोगी वस्तुएं बनाने का श्रेय अगरिया जनजाति को ही जाता है। 
जिले मण्डला, डिंडोरी, बालापार, शहडोल, सोधी आदि

2) उत्पत्ति- यह गोंड जनजाति की उपशाखा है तथा स्वयं को उनके छोटे भाई व सेवक मानते हैं। स्वयं को आग से उत्पन्न मानने के कारण इन्हें अगरिया कहा जाता है। ये गोंड तथा बैगा के आसपास ही रहते हैं।

3) पहनावा- पुरुष धोती, कमीज, बण्डो एवं स्त्रिया धोती पहनती है। यह गुदनाप्रिय जनजाति है।

4) सामाजिक संरचना - अगरिया पितृसत्तात्मक होते हैं।

5) विवाह- इनके प्रमुख विवाह राजी-बाजी, पेठूल, मंगनी आदि हैं।

6) पर्व-त्योहार - दशहरा, दीपावाली, होली, नवरात्री, कर्मपूजा आदि।

7) नृत्य - करमा, साला, बिल्मा, दहका आदि।

8) आर्थिक संरचना - यह गाँढ तथा बैगा दोनों के लिए कृषि औजार एवं लोहे की वस्तुएं बनाते हैं। बदले में अनाज, नकद व वस्त्र प्राप्त करते हैं। इनका प्रिय भोजन सुअर का मास होता है।

9) धार्मिक संरचना- इनके प्रमुख देवता लोहामुर है, जिनका निवास स्थान धधकती भ‌ट्टी माना जाता है। ये अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए काली मुर्गी की बलि चढ़ाते है। अगरिया का जीवन अत्यंत साधारण एवं सामान्य होता है। इनके घर मिट्टी तथा घास-फूस के बने होते हैं। यह उड़द की दाल को शुभ संकेत मानते हैं।

भारिया जनजाति


1) भोगोलिक क्षेत्र- भारिया का शाब्दिक अर्थ है भार दोने वाला। यह विशेष पिछड़ी जनजातियों में गिनी जातो है, जो आज भी शिक्षा एवं नवीन युग से काफी दूर है। 
जिले - छिदबाड़ा के पातालकोट, बैतूल। जबलपुर आदि।

2) उत्पत्ति- भारिया गोंड जनजाति की उपशाखा मानी जाती है जो ड्रविडियान परिवार को जनजाति में शामिल है। ये गोंड़ों को अपना बड़ा भाई मानते हैं। ये राजा कर्ष देव को अपना पूर्वज मानते हैं

3) शारीरिक बनावट - इनका कद मध्यम बदन छरहरा  रग सावला लोक आखे छोटो, नाक चौड़ी, होंठ पतले तथा बाल काले  होते हैं। 

4) रहन-सहन - भारिया घने जंगलों में एकांत और ऊंचे स्थानों पर रहना पसंद करते हैं उनके गांव को ढाना कहते हैं जिसमें 2 से लेकर 25 तक घर होते हैं

5) पहनावा- पुरुष पगड़ी, पोतो, कुता, बड़ी एवं स्त्रियां लाल रंग की साड़ी, पोलका पहनती हैं।

6) रहन-सहन - इनके घर घास-फूस, लकड़ी एवं बांस के बने होते हैं। भारिया जनजाति कला संपन्न होती है तथा महिलाएं दीवारों पर अलंकरण करती है। महुआ एवं आम के बीजों की रोटी वर्षा ऋतु में खाते हैं। ये शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों होते हैं। इनका मुख्य पेय पदार्थ पेज है। इनमें मृतक को दफनाया जाता है।

 7) सामाजिक संरचना -भारिया समाज पितृसत्तात्मक होता है। यह रुद्धिवादी भी होते हैं। इनका मुखिया पटेल कहलाता है। इनमें स्त्री-पुरुष को समान अधिकार प्राप्त है।

8) विवाह - इनमें समगोत्रीय विवाह नहीं होते हैं, लेकिन गोडों की भाँति मोसेरे-फुफेरे भाई-बहनों में विवाह को सुभ माना जाता है। ये गोंडों को विधवा से रीति के अनुसार पुनर्विवाह करने का पहला हक अपना मानते हैं। इनमें मंगनी विवाह, राजो-बाजी विवाह, लमसेना विवाह तथा विधवा विवाह का भी प्रचलन है।

9) पर्व-त्योहार- दीपावाली, जवारा, नवरात्रि, होली आदि।

10) आर्थिक संरचना - पहले यह दहिया खेती करने वाले भारिया में, लेकिन अब स्थायो कृषि करने लगे हैं। ये लघु वनोपज, जड़ी-बूटी, बांस शिल्प, झाडू व लकड़ी के दरवाजे बनाने का कार्य भी करते हैं। भरिया स्वभाव से मेहनती, सहिष्णु, संकोची, ईमानदार, सच्चे व भोले होते हैं।

11) धार्मिक जीवन- यह हिन्दू तथा आदिकसी दोनों के देवताओं को मानते हैं। इनके प्रमुख देवता बृदादेव, दूल्हादेव, नागदेव, भीमसेन, बरूआ आदि है। ये लोग तंत्रमंत्र, जादूटोना, भूतप्रेत पर अधिक विश्वास करते हैं।

पनिका जनजाति


1) भीगोलिक वितरण - यह जनजाति पूर्वी मध्य प्रदेश में निवास करती है।

जिले सोधी, शहडोल, रीवा, उमरिया, आदि।

2) उत्पत्ति - इनको मान्यता है कि कबीर का जन्म जल में हुआ था, जिनका लालन-पालन एक पनिका जनजाति की महिला ने किया था। इसी कारण अधिकांश पनिका कयोरपंथी होते हैं, जिस कारण वे मास-मदिरा का सेवन नहीं करते हैं और निर्गुण विचारधारा के उपासक होते हैं। पनिका जाति ने पृथ्वी पर सबसे पहले कपड़ा बुना अत: आज भी बुनकर का काम करते हैं। सामाजिक संरचना इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है। मनिका कई गोत्रों में घंटी हुई है, जिन्हें कुर (कुली) कहा जाता है। कई कुर मिलकर एक कुरड़ा का निर्माण करते हैं। कुरता के लोग आपस में विवाह नहीं करते हैं। 

4) विवाह -  इनमें सम गोत्रीय विवाह नहीं होते हैं। इनमें लमसेना,   घुसपैठिया ,पुनर्विवाह आदि का भी प्रचलन है।

5) शारीरिक संरचना- ये सामान्यतः सवाले, सामान्य कद के होते हैं।

6) पहनावा- पुरुष सफेद धोती-कुर्ता, रंगीन बडी एवं स्त्रियां धोती, पोलका पहनती हैं।

7) धार्मिक संरचना- इन पर हिन्दू धर्म का प्रभाव होने के कारण ये सूर्य, इन्द्र हनुमान, दुल्हादेव, चूदीमाता आदि की पूजा करते हैं। शवों को दफनाते हैं, लेकिन शक्ति पनिका शवों को जलाते या विसर्जित भी करते है।

8) आर्थिक जीवन- इनके आर्थिक व्यवसाय कृषि, मजदूरी, बांस के वर्तन बनाना, आखेट आदि है। 

9) अन्य-  इनकी एक पंचायत होती है जो विवादों का निपटारा करती है। यह विकास तथा सरकार की नीतियों से लाभान्वित नहीं है, क्योंकि इन्हें कहीं अनुसूचित जनजाति, तो कही पिछड़ी जनजाति माना जाता है।

बंजारा जनजाति


1) भौगोलिक क्षेत्र- बंजारा एक घुमंतू जनजाति है जो सम्पूर्ण मध्य प्रदेश  में पाई जाती जाती है। 
         जिले- निमाड़, मालवांचल आदि 

2) उत्पत्ति - इनका मूल उद्‌गम और निवास स्थान राजस्थान।

3) शारीरिक संरचना - इनका बदन गठीला होता है। इन्हें लोगडिया भी कहा जाता है।

4) वेशभूष-  पुरुष धोती कुर्ता  और स्त्री इंद्रधनुष रंग के कपड़े पहनती है। ये गुदनाप्रिय व श्रृंगारप्रिय होती है  तथा हाथी दांत की  चुड़ियों पहनती है।

5) रहन-सहन -  बंजारो का निवास मूलतः गांव से थोड़ी दूरी पर होता है, जिसे टांडा कहा जाता है।

6) विवाह -इनमें मंगनी, अपहरण, राजी-बाजी विवाह आदि प्रचलित है।

7) आर्थिक संरचना- यह लोग उपयोगी सामग्री बैलों पर लादकर गांव-गांव ले जाकर बेचते हैं। यह कंघी के अविष्कारक के रूप में जाने जाते हैं।

8) धार्मिक- बंजारे सिख धर्म से प्रभावित होते हैं। ये गुरुनानक देव व गुरुग्रंथ साहब पर अटूट विश्वास रखते हैं तथा राम- कृष्ण आदि देवता को भी मानते हैं।

9) भाषा- बंजारा जाति के लोग बंजारी बोली बोलते हैं। 




इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लूसेंट बस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान बुक पीडीएफ | Lucent Objective general knowledge pdf in hindi

लक्ष्मी कांत भारत की राजव्यवस्था पीडीएफ बुक ( Lakshmikant polity bookin hindi pdf download) - Pratiyogitamitra

Spectrum adhunik Bharat ka itihas pdf in hindi | स्पेक्ट्रम आधुनिक भारत का इतिहास पीडीएफ इन हिंदी