उद्यमिता के प्रकार अथवा स्वरुप फॉर एमपीपीएससी मैंस पेपर 4

 उद्यमिता के प्रकार अथवा स्वरुप फॉर एमपीपीएससी मैंस पेपर 4

Read More :- उद्यमिता क्या है , विशेषताएं एवं उद्यमिता के कार्य फॉर एमपीपीएससी मैंस पेपर 4

नमस्कार दोस्तों एमपीपीएससी मैंस के पेपर 4 के लिए आज आपको  उद्यमिता के प्रकार अथवा स्वरुप  नया टॉपिक लेकर आए है। एमपीपीएससी के नय पाठकृम के अनुसार ।

उद्यमिता के प्रकार अथवा स्वरुप 

प्रत्येक राष्ट्र की आर्थिक व सामाजिक दशाएं तथा विकास का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। परिणामस्वरूप, उद्यमिता के स्वरुप में भी भिन्नता पाई जाती है। आर्थिक विकास के लिए उद्यमिता के सभी स्वरूप महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य शक्ति का कार्य करते हैं। जो इस प्रकार है


(क)- जोखिम के आधार पर-


1. नवोपाय उद्यमिता - नवोपाय उद्यमिता की उत्पति नव विचारों तथा उन्हें व्यवहार्य व्यवसाय में परिवर्तित करके अपने उत्पादन बाजार में इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि वह ग्राहकों की पसंद पर खरा उतर सके और कभी कभार बाजार में उसके नए ग्राहक भी तैयार deww कर सके। इसके उदाहरण स्टीव जॉब्स एवं बिल गेट्स हैं।

2. अनुकरणशील उद्यमिता :- इसके अंतर्गत बाजार में अपना प्रभाव स्थापित करने के उद्देश्य से कुछ व्यवसाय विचारों की नकल करके चालू विधियों का उपयोग करके तथा उनमें थोड़े सुधार करके किया जाता है अनुकरणशील उद्यमिता का अभिलक्षण बाह्य पस्यिर्तनशील परिवेश के अनुसार प्रौद्योगिकियों को अंगीकार करना है। इसके उदाहरण छोटे शापिंग कॉम्प्लेक्स एवं छोटे कार निर्माता है।

3. फैबियन (अवसरवादी) उद्यमिता: इसकी सम्बद्धता ऐसे व्यवसाय संगठनों से है जिनमें वैयक्तिक स्वामी नय विचारों एवं नयोपायों की न तो कोई संकल्पना ही करता है और न ही उनका कार्यान्वयन करता है। व्यापार संव्यवहार ग्राहक, धर्म, व्यापार एवं पूर्व व्यवहारों के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं। ऐसे संगठन जोखिम उठाने अथवा बदलाव के प्रति ज्यादा इच्छुक नहीं होते हैं तथा वे अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित पुरानी विधियों के अनुसार ही अपना व्यवहार करते हैं।

4. ड्रोन (दूर नियंत्रित) उद्यमिता:- इसका संबंध ऐसे व्यवसायों से है जिनमें स्वामी विद्यमान व्यवस्था एवं व्यापार के क्रियाकलापों की गति के प्रति संतुष्ट होता है तथा बाजार में नेतृत्व की प्राप्ति के लिए कोई रुचि नहीं दर्शाता है। निरंतर घाटे उठाने के बावजूद भी वे उत्पादन की विद्यमान विधियों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं करना चाहते हैं।


(ख)- व्यवसाय के स्वरूपों के आधार पर-

1. कृषि उद्यमिता :- इसके अंतर्गत खेती, कृषि उत्पादों की बिक्री, सिंचाई, कृषि यांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न प्रकार के कृषि क्रियाकलाप आते हैं।

2. निर्माण/औद्योगिक उद्यमिता :-  निर्माण/औद्योगिक उद्यमिता के अंतर्गत ग्राहकों की आवश्यकताओं को संज्ञान में लेने तथा तदनुसार ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्माण के उपयोग के लिए संसाधनों एवं प्रौद्योगिकी की खोज करके कच्ची सामग्रियों को तैयार उत्पाद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया की जाती है।

3. व्यापार उद्यमिता:- इसके अंतर्गत निर्माताओं से तैयार उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं तथा इन्हें ग्राहकों को या तो सीधे अथवा किसी थोक व्यापारी, डीलर अथवा खुदरा व्यापारी जैसे मध्यस्थ माध्यमों से बेचा जाता है। इसमें मध्यस्थ निर्माता और ग्राहकों के बीच कड़ी/लिंक की भूमिका निभाता है।

4. सेवा उद्यमिता : आज सामाजिक व आर्थिक वातावरण में सेवा उद्यमिता का विस्तार होता जा रहा है। ऐसी उद्यमिता में सेवा सम्बन्धी प्रकल्पों के साथ उद्यमशील व्यवहारों का भी उपयोग किया जाता है। व्यावसायिक क्षेत्रों में वित्त, बैंक, बीमा, संचार, पर्यटन आदि क्रियाओं में सेवा उद्यमिता का विस्न्तर विस्तार हो रहा है। इनमें अनेक व्यक्ति प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में उद्यमीय क्रियाओं का निर्वहन कर रहे हैं।

(ग)- प्रौद्योगिकी के प्रयोग के आधार पर-

1. प्रौद्योगिकीय उद्यमिता:-विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योग की स्थापना करने एवं उसका संचालन करने की प्रक्रिया के लिए है। इसमें उत्पादन के लिए नवोपाय युक्त विधियों का उपयोग किया जाता है।

2. गैर-प्रौद्योगिकीय उद्यमिता:- व्यावसायिक उत्तरजीविता एवं प्रतिस्पर्धी बाजार में टिके रहने के लिए विपणन एवं वितरण रणनीतियों के लिए वैकल्पिक एवं कृत्रिम विधियों का उपयोग किया जाता है।

(घ)- स्वामित्व या नेतृत्व के आधार पर-

1. सहकारी या कॉपोरेट उद्यमिता:- इसका प्रारंभ चर्गेलमैन द्वारा किया गया था। कॉपास्ट स्थामित्व वह है जिसके अंतर्गत कोई व्यक्ति नयोपाय एवं कौशल के उपयोग से किसी कॉर्पोरेट उपक्रम का प्रबंधन एवं नियंत्रण करता है।

2. निजी उद्यमिता :- इसका अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा व्यवसाय के स्वामी के रूप में अपना व्यवसाय स्थापित करना एवं उससे जुड़े जोखिमों का वहन करना है।

3. राजकीय उद्यमिता:- जिसमें व्यापार एवं औद्योगिक उद्यम का संचालय राज्य अथवा सरकार द्वारा किया जाता है।

4. संयुक्त उद्यमिता :- इसके अंतर्गत संयुक्त व्यावसायिक प्रक्रिया निजी उद्यमी एवं सरकार के मध्य की जाती है।


 (ड):-उद्यम के आकार के आधार पर-

1. सूक्ष्म उद्यम :- ऐसा व्यवसाय जिसकी कारोबार (टर्नओवर) पांच करोड़ रुपए तक हो।

2. लघु-स्तरीय :- उद्यमिता ऐसा उद्यम जिसका वार्षिक कारोबार (टर्नओचर) 5 करोड़ रुपए से अधिक हो परंतु 75 करोड़ रुपए से अधिक नहो।

3. मध्यम-स्तरीय उद्यमिता:- ऐसा उद्यम जिसका कारोबार (टर्नओवर) 75 करोड़ रुपए से अधिक तथा 250 करोड़ रुपए तक हो।


4. बृहद स्तरीय उद्यमिता : ऐसा व्यवसाय जिसका कारोबार (टर्नओवर) 250 करोड़ रुपए से अधिक हो।



(च)- सामाजिक समस्याओं के आधार पर-


1. सामाजिक उद्यमिता:- सामाजिक उद्यमिता की अवधारणा वर्ष 1960 के आसपास उत्पन्न हुई थी परन्तु बांग्लादेश में मुहम्मद युनुस द्वारा की गई "ग्रामीण बैंक" की स्थापना इस दिशा में प्रथम प्रयास था जिसमें इस अवधारणा का पूरी तरह से उपयोग किया गया था। सामाजिक उद्यमिता में सामाजिक समस्याओं एवं पर्यावरणीय समस्याओं को विचार में लेकर बदलाव करने की ओर ध्यान केन्द्रित किया गया है। इसमें समाज कल्याण में योगदान का दायित्व प्रधान है तथा लाभ को अधिक प्राथमिकता न देकर उत्तरजीविता की अनिवार्यता के साथ इसे दोयम दर्जा प्रदान किया गया है। M

2. शहरी तथा ग्रामीण उद्यमिता: शहरी साहस का विकास केवल बड़े शहरी, जैसे- मुम्बई, अहमदाबाद, कानपुर, कोलकाता आदि तक ही सीमित होता है। इससे शहरों में अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएँ, जैसे प्रदूषण, भीड़-भाड़, गंदी बस्तियाँ, सामाजिक अपराध आदि उत्पन्न हो जाती है। इसके अतिरिक्त जय साहस का विकास छोटे-छोटे गाँवों व कस्बों में होता है तो यह ग्रामीण साहस कहलाता है। ग्रामीण उद्यमिता धन के समान वितरण, गरीबी उन्मूलन व गाँवों के आर्थिक विकास का प्रमुख आधार है।

3. 'व्यवस्थित' उद्यमिता:- पीटर एफ, ड्रकर ने सामान्य साहस के विपरीत 'व्यवस्थित' उद्यमिता का वर्णन किया है। इसमें साहसी एक व्यवस्थित अनुसंधान-प्रविधि एवं सिद्धान्तों का पालन करते हैं। यह उद्यमिता उद्देश्यपूर्ण नवप्रवर्तन' पर आधारित होती है। यह नये बाजार, नये ग्राहक तथा नये अवसरों की खोज पर बल देती है।

4. महिला उद्यमिता :- महिला उद्यमिता के लिए भारत सरकार की परिभाषा के अनुसार 'किसी व्यवसाय उद्यम में महिला उद्यमिता यह है जिसमें कम से कम 51 प्रतिशत वित्तीय हितों का स्वामित्य, प्रबंधन एवं नियंत्रण महिला द्वारा किया जा रहा हो तथा उद्यम में उत्पन्न रोजगार का कम से कम 51 प्रतिशत अंशभाग महिलाओं को प्राप्त हो।" स्कमपीटर ने महिला उद्यमिता की परिभाषा व्यवसाय उद्यम में महिलाओं की इक्विटी एवं रोजगार में भागीदारी होने के आधार पर की है।

(छ)- नेतृत्व के आधार पर-

1. वैयक्तिक उद्यमिता:- वैयक्तिक उद्यमिता में व्यवसाय के प्रबन्ध एवं संचालन के समस्त कार्य एक ही व्यक्ति द्वारा तैयार किये जाते हैं। साहसी को अकेले ही उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी समस्त निर्णय लेने होते हैं। एकल साहस में स्वामित्व एवं प्रबन्ध एक ही व्यक्ति के पास होता है तथा वही सम्पूर्ण उपक्रम को नेतृत्व प्रदान करता है। वैयक्तिक साहस केवल लघु उद्योगों के सम्बन्ध में ही सम्भव है।

2. समूह उद्यमिता :- यह उद्यमिता समाज की 'तकनीकी संरचना' (Technostructure) पर आधारित होती है। यह वृहत् स्तरीय उत्पादन, श्रम विभाजन, यन्त्रीकरण तथा अन्य व्यावसायिक जटिलताओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। इस उद्यमिता में नेतृत्व एक व्यक्ति से विशेषज्ञों के एक संगठित समूह को हस्तान्तरित हो जाता है। ये विशेषज्ञ प्रायः उपक्रम के स्वामी नहीं होते हैं। यह साहस औद्योगिक विकास की गति को तेज कर देता है। ऐसे साहसियों को 'प्रवर्तकों के नाम से भी जाना जाता है।


(ज)- स्थानीयकरण के आधार पर-

1. केन्द्रीकृत उद्यमिता :- जब कुछ विशेष सुविधाओं के कारण अधिकांश उपक्रम एक ही क्षेत्र या स्थान पर स्थापित होने की प्रवृत्ति रखने है तो यह केन्द्रीकृत उद्यमिता कहलाती है। किसी स्थान विशेष पर उपक्रमों के केन्द्रित हो जाने के कई कारण होते हैं, जैसे- आधारभूत साधनों की उपलब्धि, उपयुक्त स्थिति, पहले से कार्यरत इकाइयाँ आदि।

2. विकेन्द्रित उद्यमिता :-जब उद्यमियों द्वारा देश के विभिन्न भागों में उपक्रमों की स्थापना की जाती है, तो यह विकेन्द्रित उद्यमिता कहलाती है। पिछड़े क्षेत्रों के विकास, रोजगार सृजन, धन के समान वितरण तथा नियोजित विकास की दृष्टि से सरकार विकेन्द्रित उद्यमिता को प्रोत्साहित कर रही है। इस हेतु सरकार विभिन्नसु विधाएँ, अनुदान व प्रेरणाएँ प्रदान कर रही है। 

3. ग्रामीण उद्यमिता: जब विभिन्न व्यवसायी व उपमी अपने कायों को ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न करते हैं, तो वह ग्रामीण उद्यमिता कहलाती है। इस उद्यमिता से सम्बद्ध प्रवृतियों में ग्रामीण विकास के बुनियादी आधारों में औद्योगिक कार्यों की सम्भावनाओं को देखने का प्रयास करती है।

4. शहरी उद्यमिता :-जब विभिन्न उद्यमी शहरी क्षेत्रों व बड़े-बड़े नगरों में औद्योगिक विकास के ध्येय से उद्यमीय कार्यों का निष्पादन करते हुए उद्यमीय प्रवृत्तियों को बढ़ावा देते हैं, तो यह शहरी उद्यमिता कहलाती है।


(झ)- प्रबंधन शैली के आधार पर-


1. संवर्द्धनकारी उद्यमिता : उद्यमियों द्वारा किसी भी व्यवसाय व उद्योग को प्रारम्भ करने सम्बन्धी विभिन्न संवर्द्धन कार्यों का निष्पादन किया जाता है। ये युक्ति निर्धारण, उद्देश्य निर्धारण, व्यावसायिक अवसरों की पहचान करने, संसाधनों की प्राप्ति, इनका कुशल उपयोग एवं परियोजना निर्माण तथा क्रियान्वयन सम्बन्धी औपचारिकताओं आदि कार्यों को पूरा करते हैं। अतः संवर्द्धन सम्बन्धी भूमिका, जो प्रबन्ध का मूल आधार है, के कारण उद्यमिता का स्तर व स्वरूप संवर्द्धनकारी बन जाता है।

2. नैत्यक उद्यमिता:- नैत्यक उद्यमिता मूलतः प्रबन्ध व संचालन से ही सम्बन्धित रही है इसमें उद्यमी व्यवसाय की युक्तियों, उद्देश्यों व कार्यक्रमों की रचना करने के साथ इनके समुचित क्रियान्वयन की दैनिक व सामयिक व्यवस्था भी करते हैं। इसमें उद्यमियों द्वारा प्रचन्धकों के दैनिक कायों में सहयोग व सहभागिता प्रदान की जाती है।

3. क्रियात्मक उद्यमिता: प्रबन्धशैली के इस प्रकार में प्रबन्धकीय कायों को एकीकृत व क्रियात्मक आधार पर सम्पादित करने पर बल दिया जाता है। आज भी जय उद्यमी वर्ग प्रबन्धकों के साथ सहयोग करते हैं या उन्हें स्वयं ही सम्पूर्ण उपक्रम का संचालन करना होता है तो ये प्रबन्धकीय कार्यों को एकीकृत करते हुए इनके क्रियान्वयन की पृष्ठभूमि का निर्धारण करते हैं। अतः उद्यमियों द्वारा जब क्रियात्मक प्रबन्ध के दृष्टिकोणों व विचारों को समाहित करते हुए कार्य किया जाता है तब यह क्रियात्मक उद्यमिता कहलाती है।

4. व्यावहारवादी उद्यमिता: किसी भी उपक्रम के कार्य विष्पादन की श्रेष्ठता व्यवहारवाद पर आधारित होती है। उद्यमियों द्वारा उपनी औद्योगिक क्रियाओं में जब कार्य विभाजन, अनौपचारिक समूहों का निर्माण, मानवीय सम्बन्धों को बढ़ावा देने, युक्ति निर्धारण में श्रम सहभागिता जैसे विभिन्न विचारों को अपनाया जाता है, तब उसे व्यवहारवादी विज्ञान पर आधारित उद्यमिता की संज्ञा दी जाती है।

(ण)-नवाचार के आधार पर-

1 नवीन उद्यमिता :- इस उद्यमिता के अन्तर्गत उद्यमियों द्वारा नवीन विचारों, दृष्टिकोणों, विचारधाराओं, मान्यताओं एवं तकनीकों को काम में लाया जाता है। इसका तात्पर्य है कि उद्यमी नवाचार को आधार बना कर नयी उद्यमीय प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है।

2. नवाचारात्मक उद्यमिता : नवीन एवं नवाचारात्मक उद्यमिता में विशेष अन्तर नहीं है। नवाचारात्मक उद्यमिता में नयी प्रणालियों, नये उपायों, नये सिद्धान्तों आदि के बारे में विश्लेषण करना, जाँच करना, परीक्षण करना तथा वर्तमान व भावी सम्भावनाओं के बारे में अध्ययन करना शामिल है। यह एक प्रयोगात्मक प्रक्रिया का द्योतक है। इसमें अनेक तकनीकों जैसे श्रम व समय बचाने वाले उपायों, नयी उत्पादन तकनीक का प्रस्तुतिकरण, कच्चेमाल के नये स्त्रोतों का उपयोग एवं लागत कम करने वाले उपायों की खोज व उपादेयता का परीक्षण करना शामिल होता है।

3. निष्क्रिय व तटस्थ उद्यमिता: ऐसी उद्यमिता के अन्तर्गत उद्यमियों द्वारा अपने व्यवसायिक क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का संशोधन एवं नवाचार नहीं अपनाया जाता है। उनकी रूचि व आकांक्षाओं के प्रति वे उदासीन होते हैं, भले ही अन्य उद्यमीयों को लाभ क्यों न प्राप्त हो रहे हो।

 (ट) औद्योगिक विकास के आधार पर-

1. परम्परागत उद्यमिता: जब किसी व्यापारिक इकाइयों के समूहों में उद्यमीय कार्य प्राचीनतम विचारों व विधियों द्वारा सम्पादित किये जाते हैं, एवं सम्पूर्ण कार्यों की गति अत्यन्त मन्द होती है तब यह परम्परागत उद्यमिता समझी जाती है। इसके अन्तर्गत व्यक्तियों द्वारा विकास की गति में विश्वास रखते हुए छोटे समूहों द्वारा कुटीर व्यवसाय करने, पारिवारिक स्तर पर श्रम प्रधान कार्यों को प्रमुखता देने, नवाचार व शोध कार्यों को प्रमुखता न देने व परिवर्तन की गति के शिथिल होने आदि

2. विकासोन्मुख उद्यमिता :- जब औद्योगिक उपक्रम परम्परागत अवस्था से हटकर विकास की नई दशाओं के साथ उद्यमीय विचार प्रकट होकर औद्योगिक विकास की गति के साथ कदम से कदम मिला देते हैं तो यह विकासात्मक उद्यमिता कहलाती है। ऐसे उद्यमी विकास की स्वाभाविक गति के साथ समन्वय स्थापित करते हुए जोखिम व अनिश्चितताओं को वहन करने का प्रयास करते हैं परन्तु शोध व विकास पर इनका कोई ध्यान नहीं जाता।

3. आधुनिक उद्यमिता या क्रांतिकारी उद्यमिता :- जब उद्यमी व्यवसाय की प्राचीनतम विधियों को छोड़कर नई विधियों, जोखिमों, योजनाओं, प्रवृत्तियों व उपक्रम के विस्तार व विकास की गति अपनाने का प्रयास करते हैं तो उसे आधुनिक उद्यमिता की संज्ञा दी जाती है। उत्पादन की कुछ प्रणालियों, जिनमें प्रमाणीकरण, श्रम विभाजन, विशिष्टीकरण, श्रम बचाने वाले साधन आदि प्रमुख हैं, को आधुनिक उद्यमिता के लिए समुचित प्रक्रियाओं व सम्भावनाओं के आधार रूप में प्रयुक्त किया जाता है।



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