मुद्रा स्फीति क्या है और इसके कारण क्या है ?

 मुद्रा स्फीति क्या है और इसके कारण क्या है ? 

मुद्रास्फीति क्या है -

कीमतों के सामान्य स्तर में बढ़ोतरी , कीमतों के सामान्य स्तर में सतत ब्रद्धि , कीमतों के सामान्य स्तर में लगातार वृद्धि , या सभी चीजों के दाम बढ़ रहे हो तो ये महंगाई है । 

एक बाज़ार अर्थव्यवस्था में, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें हमेशा बदल सकती हैं। कुछ कीमतें बढ़ती हैं; कुछ कीमतें गिरती हैं. मुद्रास्फीति तब होती है जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में व्यापक वृद्धि होती है, न कि केवल व्यक्तिगत वस्तुओं की; मुद्रास्फीति समय के साथ मुद्रा के मूल्य को कम कर देती है।


मुद्रा स्फीति के कारण 

मुद्रास्फीति क्यों होती है? (WHY INFLATION OCCURS?)

मुद्रास्फीति क्यों होती है इस मुद्दे पर अर्थविदों में पूरी 19 वीं और 20 वीं सदी में बहस चलती रही और यह बहस अब भी जारी है, लेकिन इस बहस से हमें मुद्रास्फीति होने के पीछे विद्यमान कारणों के बारे में जो ज्ञान प्राप्त हो सका वह महत्वपूर्ण है। इसे हम दो खंडों में बांटकर देख सकते हैं:


1. 1970 के दशक से पूर्व (Pre-1970s)

1970 के दशक से पहले जब मुद्रावादी स्कूल का चलन नहीं आया था, तब तक अर्थशास्त्री महंगाई के दो कारणों को लेकर सहमत थे।

(a) मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation) :मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन की वजह से दाम बढ़ जाते हैं। या तो मांग आपूर्ति के स्तर तक बढ़ जाती है या फिर आपूर्ति कम होती है मांग के साथ और ऐसे ■ में मांग की वजह से महंगाई बढ़ती है। ये कीन्सवादी - विचार हैं। कीन्स स्कूल का मानना है कि कर बढ़ाकर - और सरकारी खर्चों में कटौती करके लोगों को व्यय करने  से रोका जा सकता है और अतिरिक्त मांग पर काबू पाया जा सकता है।

व्यवहार में सरकारें ऐसी महंगाई को रोकने के - लिए मांग और आपूर्ति के ताने-बाने पर नजर रखती हैं। कई बार परिस्थिति के मुताबिक उन चीजों का आयात किया जाता है जिनकी आपूर्ति कम होती है, ऋणों (लोन्स) पर - ब्याज की दर बढ़ाई जाती है, मजदूरी को भी संशोधित किया जाता है।

(b) लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation)
:-
कारक इनपुट की लागत (जैसे-मजदूरी, कच्चा माल) में बढ़ोतरी की वजह से चीजों के दाम बढ़ते हैं। यानी किसी चीज के उत्पादन की लागत बढ़ने के फलस्वरूप कीमतों में होने वाला इजाफा लागत की वजह से होने वाली महंगाई होती है। कीन्स स्कूल ने सुझाव दिया कि ऐसी महंगाई पर लगाम के लिए कीमतों और आय पर नियंत्रण सीधा असर डालता है। उनके मुताबिक 'नैतिक उत्तेजना' को रोकने के लिए भी ये कारगर है और इसके अलावा ट्रेड यूनियनों की एकाधिकारिक शक्तियों को कम किया जाना भी एक अप्रत्यक्ष उपाय (मूल रूप से लागत आधारित महंगाई की मुख्य वजह इस दौर के दौरान ट्रेड यूनियनों की ज्यादा मजदूरी की मांग थी) है।
आज दुनिया भर की सरकारें ऐसी महंगाई को रोकने के लिए कई उपाय अपनाती हैं, जैसे-कच्चे माल पर एक्साइज और कस्टम शुल्क में कमी और मजदूरी संशोधन इत्यादि।

2. 1970 के दशक के बाद (Post-1970s) :- 
1970 के शुरुआती दौर में अर्थव्यवस्था के मुद्रावादी स्कूल के उदय के बाद (मुद्रावाद 1945 के बाद कीन्स के मांग प्रबंधन के विरोध के बाद विकसित हुआ) महंगाई की मुद्रावादी व्याख्या उपलब्ध कराई गई, तथाकथित 'मांगजनित मुद्रास्फीति या 'लागत जनित मुद्रास्फीति' जो अर्थव्यवस्था में मुद्रा के अधिक चलन की वजह से थी।

(a) मांगजनित मुदास्फीति (Demand-Pull Inflation)

मांग जनित महंगाई- मांग आधारित मुद्रास्फीति मुद्रावादियों के लिए उपभोक्ता के पास उत्पादन के स्तर के समान रहने के दौरान अधिक क्रय शक्ति आने की वजह से शुरू हुई (ऐसा माइक्रो स्तर पर वेतन के बढ़ने और मैक्रो स्तर पर डिफिसिट फाइनेंसिंग की वजह से है)। ये विशिष्ट रूप से बिना उत्पादन या आपूर्ति का स्तर समानुपात में बढ़ाए हुए अतिरिक्त मुद्रा लोगों के हाथ में देने का मामला है (चाहे अतिरिक्त नोट छापकर या सार्वजनिक उधारी के जरिये, जैसे - "रुपया बहुत ज्यादा है लेकिन खरीदने के लिए चीजें कम" ये मांगजनित मुद्रास्फीति का मुख्य स्रोत है।

(b) लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation)_
इसी तरह मुद्रावादियों के लिए लागत जनित मुद्रास्फीति भी महंगाई की कोई स्वतंत्र अवधारणा नहीं है- ये कुछ अतिरिक्त मुद्रा द्वारा वित्त पोषित होती है (ये सरकार द्वारा किया जाता है, मजदूरी के संशोधन से, सार्वजनिक उधारी से या नोट छापकर आदि)। कीमतों में वृद्धि का अपने आप उपभोक्ता की खरीदारी पर असर नहीं पड़ता। बल्कि कुछ अतिरिक्त क्रय शक्ति बनाए जाने की वजह से लोगों के पास अतिरेक हो जाता है और वो ऊंची कीमतों पर भी खरीदारी करने लगते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग अपनी खपत (जैसे- कुल मांग) अपनी क्रय क्षमता के हिसाब से कर लेते और इससे चीजों की समग्र मांग नीचे जा जाती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका मतलब हर लागत जनित मुद्रास्फीति रुपयों की अधिकता - मुद्रा आपूर्ति या आमद के बढ़ने का नतीजा है।

मुद्रावादियों का मानना है कि एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था में तय स्तर के उत्पादन के लिए तय स्तर की मुद्रा की आपूर्ति जरूरी है। उत्पादन के उसी स्तर पर रुपयों की अतिरिक्त आपूर्ति की वजह से मुद्रास्फीति होती है। अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीतिक दबाव की स्थिति को काबू में रखने के लिए उन्होंने समुचित मौद्रिक नीति (मुद्रा आपूर्ति, ब्याज दर, नोटों की छपाई, सार्वजनिक उधारी आदि) भी सुझाई। मुद्रावादियों ने मुद्रास्फीति को लेकर कीन्स के सिद्धांतों को खारिज कर दिया।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लूसेंट बस्तुनिष्ठ सामान्य ज्ञान बुक पीडीएफ | Lucent Objective general knowledge pdf in hindi

लक्ष्मी कांत भारत की राजव्यवस्था पीडीएफ बुक ( Lakshmikant polity bookin hindi pdf download) - Pratiyogitamitra

Spectrum adhunik Bharat ka itihas pdf in hindi | स्पेक्ट्रम आधुनिक भारत का इतिहास पीडीएफ इन हिंदी