पाचन तंत्र और पाचन तंत्र के प्रमुख अंग

 पाचन तंत्र और पाचन तंत्र के प्रमुख अंग 

पाचन तंत्र (Digestive system):

पाचन तंत्र एक यांत्रिक एवं रासायनिक अभिक्रिया हैं जो कि भोजन से प्राप्त जटिल कार्बनिक यौगिकों को सरल कार्बनिक यौगिकों में तोड़ने का कार्य करती हैं इस प्रक्रिया को पाचन प्रक्रिया कहाँ जाता हैं।

भोजन में लिए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, जटिल कार्बनिक यौगिक माने जाते हैं। पाचन क्रिया को सम्पन्न कराने और अवशोषण एवं श्वागीकरण कराने हेतु 10 मीटर लम्बी आहार नाल होती हैं। जिसमें जगह- जगह पर पाचक ग्रंथियां लगी होती हैं।

पाचन तंत्र और पाचन तंत्र के प्रमुख अंग

मनुष्य पाचन तंत्र के प्रमुख अंग

मनुष्य के पाचन तंत्र में मुख्यतः 8 अंग भाग लेते है। जो निम्नानुसार है।

1. मुख

2. अमाशय

3. पक्वाशय

4. छोटी आंत

5. बड़ी आंत

6. यकृत

7. पित्ताशय

8. अग्न्याशय


चलिए इन सभी मे अंगों में होने वाली पाचन क्रिया को विस्तार से समझते है।

1. मुख में पाचन

मनुष्य के शरीर में भोजन का पाचन मुख से प्रारम्भ हो जाता हैं और यह छोटी आंत तक जारी रहता हैं मुख में स्थित लार ग्रंथियों से निकलने वाला एन्जाइम टायलिन भोजन में उपस्थित मण्ड को माल्टोज शर्करा में अपघटित कर देता हैं।

फिर माल्टोज नामक एन्जाइम माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता हैं लाइसोजाइम नामक एन्जाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता हैं इसके अतिरिक्त लार में उपस्थित शेष पदार्थ कार्य करते हैं इसके बाद भोजन अमाशय में पहुँचता हैं।

मुख में भोजन अल्प समय के लिए रूकता हैं। किंतु यहां पर आंशिक रूप से कार्बोहाइड्रेट का पाचन होता हैं।

मुख में पाचन के समय निम्न तीन अंग भाग लेते है
  • दांत

  • जीभ

  • लार

2. अमाशय में पाचन

मुख के बाद भोजन ग्रास नली से होते हुए अमाशय में पहुँचता हैं जहाँ पर 3 से 4 घण्टे तक अमाशय में ही रहता हैं यही पर अमाशय की आन्तरिक दीवारों से बनाए गए जठर रस को मिलाया जाता हैं।

यह रस अत्यधिक अम्लीय होता हैं इसका PH मान 1.4 होता हैं। यह भोजन में उपस्थित प्रोटीन में सहायक हैं

अमाशय में स्थित पाइलोरिक कोशिकाओं के द्वारा जठर रस का निर्माण किया जाता हैं।

अमाशय में ही उपस्थित आक्सीटिंक कोशिकाओं के द्वारा हाइड्रो क्लोरिक अम्ल (HCL) का निर्माण किया जाता हैं इसे अमाशयी रस कहा जाता हैं। Ulcer और एसिडिटी से अमाशय क्षति ग्रस्त हो जाता हैं। 

इसमें 3 प्रकार के पाचक एन्जाइम उपस्थित होते हैं।
  • प्रोरेनिन (Proranin)

  • रैनिन (Ranin)

  • केशीनोजोन (Cacinozin)
3. पक्वाशय में पाचन

भोजन को पक्वाशय में पहुँचते ही सर्वप्रथम इसमें यकृत से निकलने वाला पित्त रस आकर मिलता हैं। पित्त रस क्षारीय होता हैं और यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बना देता हैं। यहाँ अग्न्याशय से अग्न्याशय रस आकर भोजन में मिलता हैं।

पक्वाशय में तीन प्रकार के एन्जाइम होते हैं।

  • ट्रिप्सिन (Trypsin)

  • एनाइलेज (Amylase)

  • लाइपेज (Lipase)
ट्रिप्सिन (Trypsin): यह प्रोटीन एवं पेप्टोन की पॉली पेप्टाइडस तथा अमिनो अम्ल में परिवर्तित करता हैं।

एनाइलेज (Amylase): यह मांड को घुलनशील शर्करा में परिवर्तित करता हैं।

लाइपेज (Lipase): यह इमल्सीकरण वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता हैं।

4. छोटी आंत में पाचन

यकृत (पक्वाशय) के बाद भोजन छोटी आंत में पहुँचता हैं जहाँ पचे हुए भोजन से आवश्यक भोज्य पदार्थों का अवशोषण छोटी आंत के द्वारा ही किया जाता हैं। छोटी आंत का सबसे लम्बा भाग जो कि अवशोषण के बाद आवश्यक भोज्य पदार्थों के स्वागीकरण में सहायक हैं। छोटी आंत के बाद भोजन बड़ी आंत के प्रारंभिक भाग में पहुँचता हैं।

छोटी आँत की दीवारों से आंत्रिक रस निकलता हैं इसमें निम्न पाचक एन्जाइम उपस्थित होते हैं।

  • इरेप्सिन (Erepsin)

  • सुक्रेज (Sucrase)

  • माल्टेज (Maltase)

  • लैक्टेज (Lactase)

  • लाइपेज (Lipase)

इरेप्सिन (Erepsin): शेष प्रोटीन एवं पेप्टोन को अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता हैं।

सुक्रेज (Sucrase): सुक्रेज को ग्लूकोज एवं फ्रुकटोज में परिवर्तित करता हैं।

माल्टेज (Maltase): यह माल्टेज को ग्लूकोज एवं फुकटोज में परिवर्तित करता हैं।

लैक्टेज (Lactase): यह लैक्टोज को ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज में परिवर्तित करता हैं।

लाइपेज (Lipase): यह इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिडस में परिवर्तित करता हैं।

5. बड़ी ऑत

छोटी आंत के समाप्त होने के बाद पाचन बड़ी आंत मे आरंभ होता हैं यह छोटी ऑत से अधिक चौड़ी तथा लगभग 5-6 फुट लंबी होती है। इसका अन्तिम डेढ़ अथवा 2 इंच का भाग ही मलद्वार अथवा गुदा कहा जाता है।

गुदा के ऊपर वाले 4 इंच लम्बे भाग को मलाशय कहते हैं। यह बड़ी ऑत छोटी ऑत के चारों ओर घेरा डाले

पड़ी रहती है। इस गति के कारण छोटी ऑत से आये हुए आहार रस (Chyme) के जल भाग का शोषण होता है।

छोटी ऑत से बचा हुआ आहार रस जब बड़ी ऑत में आता है, तब उसमें 95 प्रतिशत जल रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ भाग प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का भी होता है। बड़ी ऑत में इन सबका ऑक्सीकरण होता है तथा जल के बहुत बड़े भाग को सोख लिया जाता है।

अनुमानतः 24 घण्टे में बड़ी ऑत में 400 C.C पानी का शोषण होता है। यहाँ से भोजन रस का जलीय भाग रक्त में चला जाता है तथा गाढ़ा भाग विजातीय द्रव्य के रूप में मलाशय में होता हुआ मलद्वार से बाहर निकल जाता है।


बड़ी ऑत के निम्न सात भाग होते है।

  • सीकम (Cascum)

  • आरोही कोलन (Ascending)

  • अनुप्रस्थ कोलन (Transfer Colon)

  • अवरोही कोलन (Decending Colon)

  • सिग्मॉयड कोलन (Sigmoid)

  • मलाशय (Rectum)

  • गुदा द्वार (Anus)
6. यकृत में पाचन

यक्त शरीर की सबसे बड़ी एवं व्यस्त ग्रंथि हैं जो कि हल्के पीले रंग पित्त रस का निर्माण करती हैं यह भोजन में ली गई वसा के अपघटन में पाचन क्रिया को उत्प्रेरक एवं तेज करने का कार्य करता हैं।

इसका एकत्रीकरण पित्ताशय में होता हैं यकृत अतिरिक्त वसा को प्रोटीन में परिवर्तित करता हैं एवं अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में परिवर्तित करने का भी कार्य करता हैं। जो कि आवश्यकता पढ़ने पर शरीर को प्रदान किए जाते है।

वसा के पाचन के समय उतपन्न अमोनिया (विषैला तरल पदार्थ) को यकृत यूरिया में परिवर्तित कर देता हैं। यकृत पुरानी एवं क्षति ग्रस्त लाल रक्त कणिकाओं को मार देता हैं।

यकृत से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
  • यकृत का वजन 1.5 से 2 किलोग्राम का होता हैं। यकृत का PH मान 7.5 होता हैं।
  • यह आंशिक रूप से ताँबा, और लोहा को संचित रखता हैं।
  • जहर/विष देकर मारे गए व्यक्ति की पहचान यकृत के द्वारा ही की जाती हैं।
  • इसके द्वारा ही पित्त स्रावित होता हैं यह पित्त आँत में उपस्थित एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता हैं।
  • यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता हैं।
  •  फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता हैं जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता हैं।
  • हिपैरिन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा ही होता हैं जो शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता हैं।
  • मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता है। यह शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता हैं। 
  • भोजन में जहर देकर मारे गए व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता है।
7. पित्ताशय में पाचन

पित्ताशय नाशपाती के आकार की एक थैली होती हैं जिसमें से निकलने वाला पित्त जमा रहता हैं। पित्ताशय से पित्त पक्वाशय नलिका के माध्यम से आता है पित्त का पक्वाशय में गिरना प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा होता है। 

पित्तपीले-हरे रंग का क्षारीय द्रव हैं। जिसका PH मान 7.7 होता हैं।

पित्त में जल की मात्रा 85% एवं पित्त वर्णक की मात्रा 12% होती हैं।

पित्ताशय के प्रमुख्य कार्य

पित्ताशय भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता हैं। यह भोजन में आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता हैं।

इसका कार्य वसाओं का इमल्सीकरण करना हैं। आँत की क्रमा कुंचन गतियों को बढ़ाता हैं जिससे भोजन में पाचक रस भली-भांति मिल जाते हैं।

यह विटामिन k एवं वसाओं में घुले अन्य विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है। पित्तवाहिनी में अवरोध हो जाने पर यकृत कोशिकाओं रुधिर से बिलिरुबिन लेना बंद कर देती हैं फलस्वरूप विलिरुबिन सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता हैं इसे ही पीलिया कहते हैं।

8. अम्याशय में पाचन

यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि हैं यह एक साथ अन्तःखावी और बहिःस्रावी दोनों प्रकार की ग्रंथि हैं।

अम्न्याशय से अन्याशयी रस निकलता है जिसमें 9.8% जल शेष भाग में लवण एवं एन्जाइम होते हैं यह क्षारीय द्रव होता है अग्न्याशय PH मान 7.5 से 8.3 होता हैं। इसमें तीनों प्रकार के मुख्य भोज्य पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट, बसा, और प्रोटीन) को पचाने के लिए एन्जाइम होते हैं इसलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता हैं।

अग्न्याशयी रस के एन्जाइम निम्नलिखित हैं
  • ट्रिप्सिन (Trypsin) 

  • ऐमाइलेज (amylase)

  • लाइपेज (lipase)

ट्रिप्सिन (Trypsin): प्रोटीन को ऐमिनों अम्लों में तोड़ देनेवाला एंजाइम ट्रिप्सिन (Trypsin) कहलाता है।

ऐमाइलेज (amylase): ऐमाइलेज की क्रिया कार्बोहाइड्रेट पर होती है। स्टार्च तथा गन्ने की शर्कराएँ माल्टोज में बदल जाती हैं जो आगे चलकर ग्लूकोज का रूप ले लेती हैं।

लाइपेज (lipase): लाइपेज की क्रिया से वसा अम्ल और ग्लिसरिन में विभजित हो जाती है।

पाचन तंत्र के खराब होने से उत्पन्न विकार

यदि किसी भी जीव का पाचन तंत्र ठीक से कार्य नहीं करता तो उसके अनेको बुरे परिणाम होते है जिससे निम्नानुसार विकार का निर्माण होता है।

1. पीलिया (Jaundice)

2. वमन (Vomiting)

3. प्रवाहिका (Diarrhoea) 4. अनपच (Indigestion)

5. कोष्ठबद्धता या कब्ज (Constipation)


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