पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना और संगठन | वायुमंडल में कितनी परतें होती है।
वायुमंडल
पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु के विस्तृत फैलाव को वायुमंडल (Atmosphere) कहते हैं। वायुमंडल की ऊपरी परत के अध्ययन को वायुर्विज्ञान (Aerology) और निचली परत के अध्ययन को ऋतु विज्ञान (Meteorology) कहते हैं। वायु पृथ्वी के द्रव्यमान का अभिन्न भाग है तथा इनके कुल द्रव्यमान का 99% पृथ्वी के सतह से 32 कि.मी. की ऊँचाई तक स्थित है |
वायुमंडल का संगठन
वायुमंडल का संगठन निम्न तत्वों से मिलकर बनता है
- गैस
- जलवाष्प
- धूल के कण
वायुमंडल में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन , 21 प्रतिशत ऑक्सीजन
0.93% आर्गन, 0.03% कार्बन डाई ऑक्साइड तथा अल्प मात्रा में हाइड्रोजन, हीलियम, ओज़ोन, निऑन, जेनान आदि गैसें उपस्थित रहती हैं।वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा 3% से 5% तक होती है, जिसकी प्राप्ति मुख्य रूप से महासागरों, जलाशयों आदि के वाष्पीकरण से होती है।
वायुमंडल की विभिन्न परतें क्या है ?
वायुमंडल को निम्न परतों में बांटा गया है :-
- क्षोभ मंडल
- समताप मंडल
- मध्यमंडल
- आयनमंडल
- बाह्यमण्डल
1. क्षोभमंडल (Troposphere): यह वायुमंडल का सबसे नीचे वाली परत है। इसकी औसत ऊँचाई सतह से लगभग 13 km है। (ध्रुवों पर 8 km व विषुवत् रेखा पर 18km)
क्षोभमंडल में तापमान की गिरावट की दर प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C अथवा 1 किमी. की ऊँचाई पर 6.4°C होती है। सभी मुख्य वायुमंडलीय घटनाएँ जैसे बादल, आँधी एवं वर्षा इसी मंडल में होती हैं। इस मंडल को संवहन मंडल कहते हैं, क्योंकि संवहन धाराएँ इसी मंडल की सीमा तक सीमित होती हैं। इस मंडल को अधो मंडल भी कहते हैं।
जैविक क्रिया के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण संस्तर है। क्षोभमंडल और समतापमंडल को अलग करने वाले भाग को क्षोभ सीमा कहते हैं। विषुवत वृत्त के ऊपर क्षोभ सीमा में हवा का तापमान -80°C और ध्रुव के ऊपर 45°C होता है। यहाँ तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभसीमा कहा जाता है।
2. समतापमंडल (Stratosphere):
समतापमंडल 50 किमी. की ऊँचाई तक है। समतापमंडल की मोटाई ध्रुवों पर सबसे अधिक होती है, कभी-कभी विषुवत् रेखा
पर इसका लोप हो जाता है। इसमें मौसमी घटनाएँ जैसे आँधी, बादलों की गरज, बिजली कड़क, धूल-कण एवं जलवाष्प आदि कुछ नहीं होती हैं।
इस मंडल में वायुयान उड़ाने की आदर्श दशा पायी जाती है। > कभी-कभी इस मंडल में विशेष प्रकार के मेघों का निर्माण होता है, जिन्हें मूलाभ मेघ (Mother of pearl cloud) कहते हैं।
समताप मंडल की एक महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि इसमें ओजोन गैस की एक परत पायी जाती है, जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। इसीलिए इसे पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहते हैं।
ओजोन परत को नष्ट करने वाली गैस CFC (Chloro-fluoro- carbon) है, जो एयर कंडीशनर, रेफ्रीजरेटर आदि से निकलती है। ओजोन परत में क्षरण CFC में उपस्थित सक्रिय क्लोरीन (CI) के कारण होती है। ओजोन परत की मोटाई नापने में डाब्सन इकाई का प्रयोग किया जाता है।
नोट : कुछ विद्वान ओजोन मंडल को एक अलग मंडल मानते हैं, इसकी ऊँचाई 32 किमी. से 60 किमी. के मध्य मानते हैं। इस मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता जाता है; प्रति एक किमी. की ऊँचाई पर तापमान में 5°C की वृद्धि होती है।
3. मध्यमंडल (Mesosphere):
मध्यमंडल, समताप मंडल के ठीक ऊपर 80 km की ऊँचाई तक फैला है। इस संस्तर में भी ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है और 80 km की ऊँचाई तक पहुँचकर यह 100°C हो जाता है। अंतरिक्ष से प्रवेश करने वाले उल्का पिंड इस परत में आने पर जल जाते हैं। मध्य मंडल की ऊपरी परत को मध्य सीमा कहते हैं।
4. आयनमंडल (Ionosphere):
आयन मंडल मध्यमंडल के ऊपर 80 किमी. से 400 किमी. के बीच स्थित है। इसमें विद्युत आवेशित कण पाये जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं तथा इसीलिए इसे आयन मंडल के नाम से जाना जाता है।
नोट: यह भाग कम वायुदाब तथा पराबैंगनी किरणों द्वारा आयनीकृत होता रहता है।
5. बाह्यमंडल (Exosphere):
आयनमंडल से ऊपर के भाग को बाह्यमंडल कहा जाता है। > इसकी कोई ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं है।
इस मंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस की प्रधानता होती है। इस मंडल की महत्वपूर्ण विशेषता इसमें औरोरा आस्ट्रालिस एवं औरोरा बोरियालिस की होने वाली घटनाएँ हैं। औरोरा का शाब्दिक अर्थ होता है प्रातःकाल (dawn) जबकि बोरियालिस तथा आस्ट्रालिस का अर्थ क्रमशः 'उत्तरी' एवं 'दक्षिणी' होता है। इसी कारण उन्हें उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश (aurora borealis) एवं दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश (aurora australis) कहा जाता है।
वास्तव में औरोरा ब्रह्माण्डीय चमकते प्रकाश होते हैं, जिनका निर्माण चुम्बकीय तूफान के कारण सूर्य की सतह से विसर्जित
इलेक्ट्रॉन तरंग के कारण होता है। औरोरा ध्रुवीय आकाश में लटके विचित्र बहुरंगी आतिशबाजी की तरह दिखाई पड़ते हैं। ये प्रायः आधी रात के समय दृष्टिगत होते हैं।
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