अल नीनो क्या है ? विश्व और भारत में इसका प्रभाव | EL Nino in hindi
अल नीनो क्या है ? विश्व और भारत में इसका प्रभाव । El Nino in hindi
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट प्रतियोगिता मित्र पर आज की इस पोस्ट के मध्यम से हम जानेंगे El nino के बारे में। इसके बारे में विस्तार से जानकारी आपको आज की इस पोस्ट के मध्यम से हम आपको प्रदान कर रहे है।
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अल-नीनो क्या है?
अल नीनो एक जलवायु घटना है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से गर्म होने से संबंधित है।
अलनीनो मूलरूप से स्पैनिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है छोटा बच्चा। ये नाम पेरू के मछुआरों द्वारा दिया गया है। प्रति 3 से 5 वर्ष में दंडी पेरू धारा को विस्थापित करके पेरू के तट के पास गर्म महासागरीय धारा स्थापित हो जाती है जिसे अल नीनो कहा जाता है।
इस घटना के क्रिसमस के आस-पास होने के कारण इसे ईशु का शिशु (क्राईस्ट चाइल्ड) कहा जाता है इसे महासागरीय बुखार भी कहा जाता है।
अल नीनो का प्रभाव मौसम से कहीं आगे तक फैला है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
इसकी शुरुआत पूर्वी प्रशांत महासागर से होती है एवं लगभग एक वर्ष की अवधि के लिए इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व में फैल जाता है। 19 वीं शताब्दी में ही पेरू के मछुआरों ने यह पाया कि पेरू के तट पर कुछ वर्षों के अंतराल पर एक गर्म जलधारा प्रवाहित होने लगती है। इस गर्म जलधारा की उत्पत्ति, क्रिसमस के समय होती है एवं इसके प्रभाव से इस महासागरीय क्षेत्र में मछलियां विलुप्त हो जाती हैं।
इसे उन्होंने 'क्रिसमस के बच्चे की धारा' (Corriente del Nino) का नाम दिया।
अल नीनो की उत्पत्ति के साथ ही तटवर्ती क्षेत्र में सतह के नीचे के जल का ऊपर आना बंद हो जाता है। इसके फलस्वरूप ठंडे जल का स्थानांतरण पश्चिम से आने वाले गर्म जल द्वारा होने लगता है और इस ठंडे जल के जमाव के कारण पैदा हुए पोषक तत्वों को नीचे खिसकना पड़ता हैं। जिसके कारण प्लँकटन तथा मछलियां विलुप्त होने लगती हैं। इन मछलियों पर निर्भर रहने वाले अनेक पक्षी भी मरने लगते हैं। इसे ही अल नीनो प्रभाव कहा जाता है।
अलनीनो के पूर्व सामान्य परिस्थितियाँ
सामान्य परिस्थितियों के दौरान प्रशान्त महासागर में पेरू तट के निकट ठंडी महासागरीय धारा तथा ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के पास गर्म महासगरीय धारा पाये जाने के कारण पेरू के तट के पास उच्च दाब
तथा ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के पास निम्न दाव बनने से दक्षिण प्रशान्त महासागर के पश्चिमी भाग से वायु को संवहन तथा पूर्वी भाग में वायु का अवतलन होने पर ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर संवहन से वर्षा तथा पेरू तट पर अवतलन से शुष्क परिस्थितियों का निर्माण होता है।
✓ दक्षिण प्रशान्त महासागर के पश्चिमी भाग एवं दक्षिणी हिंद महासागर के पश्चिमी भाग एवं दक्षिणी हिंद महासागर में समान दाब (निम्न दाब) परिस्थितियाँ पायी जाने से हिंद महासागर पर भी वायु का संवहन
होने पर यहाँ से गुजरने वाली पवने आर्दता को ग्रहण कर भारतीय उपमहाद्वीप तथा द.पू. एशियाई देशों में वर्षा करती है।
* अलनीनो की परिस्थितियाँ
✓ अलनीनो के दौरान पेरू के तट के पास गर्म महासागरीय धारा के स्थापित होने पर दक्षिणी प्रशान्त महासागर के पूर्वी भाग में वायु का संवहन प्रारम्भ होने के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के पास वायु का अवतलन होता है। पेरु के तट के पास निम्न दाब ताथ वायु का संवहन होने से वर्षा प्राप्त होती है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के पास उच्च दाव तथा वायु के अवतलन से शुष्क परिस्थितियाँ निर्मित होता है। इस दौरान हिंद महासागर के दक्षिणी भाग भी उच्च दाब निर्मित होने पर वायु के अवतलन होने के कारण यहाँ से गुजरने वाली मानसून पवनों के शुष्क रह जाने के कारण अलनीनो के दौरान भारतीय मानसून के कमजोर पड़ने पर सामान्यतः कम वर्षा प्राप्त होती है।
विश्व में अल नीनो का प्रभाव
अल नौनो दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों को अलग अलग तरीकों से प्रभावित करता है। भारत के बाहर के क्षेत्रों
में देखे गए कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं:
उत्तरी अमेरिका: अल नीनो अटलांटिक तूफान गतिविधि को दबा देता है > दक्षिण अमेरिका: दक्षिण अमेरिका के पेरु और इक्वाडोर जैसे तटीय देशों में भारी बारिश और बाढ़ का का खतरा बढ जाता है। अल नीनो दक्षिण अमेरिका के तटों पर ठंडे, पोषक तत्वों से भरपूर पानी के उत्थान को कमजोर कर देता है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और मत्स्य पालन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशियाः इन क्षेत्रों में आमतौर पर अल नीनो घटनाओं के दौरान वर्षा में कमी आती है, जिससे सूखा पड़ता है और कृषि, जल आपूर्ति और पारिस्थितिकी तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। वर्षा में इस कमी से जंगल में आग का खतरा भी बढ़ता है।
अफ्रीका: पूर्वी अफ्रीका में सामान्य से अधिक बारिश होती है, जिससे बाढ़ आती है। दक्षिणी अफ्रीका को शुष्क परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिससे पानी की कमी हो सकती है और कृषि पर प्रभाव पड़ता है।
यूरोप: यूरोप पर प्रभाव अधिक अनिश्चित हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि अल नीनो अन्य जलवायु पैटर्न के साथ कैसे संपर्क करता है। हालाँकि, यह संभावित रूप से जेट स्ट्रीम की ताकत और पथ को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में विभिन्न मौसम संबंधी विसंगतियाँ होती हैं।
भारत में अल नीनो का प्रभाव
भारत में अल-नीनो प्रभाव ज्यादातर नकारात्मक है क्योंकि भारतीय मानसून और अल-नीनो एक दूसरे के
विपरीत हैं। यह मानसून को कमजोर करता है और कई बार मानसून की विफलता का कारण बनता है।
अल नीनो का मानसून पैटर्न और वर्षा पर प्रभावः अल नीनो भारतीय मानसून पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, जिससे वर्षा पैटर्न में उतार चढ़ाव होता है। अल नीनो के दौरान, भारत में अक्सर औसत से कम मानसूनी बारिश होती है, जिससे संभावित रूप से सूखे की स्थिति पैदा होती है। महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात और राजस्थान जैसे प्रमुख सूखा-प्रवण क्षेत्र एल नीनो प्रभाव का सामना करते हैं।
सूखा और पानी की कमीः मानसूनी वर्षा कम होने से भारत के कई हिस्सों में पानी की कमी और सूखा पड़ता है। ये स्थितियाँ कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे फसल की पैदावार में कमी आती है। कमजोर मॉनसून जलविद्युत बांध बिजली उत्पादन को भी कम करने में भी योगदान देता है, जिसके परिणामस्वरूप सिंचाई की जरूरतों के लिए बिजली भी कम होती है। इससे फसल की पैदावार और भी कम हो जाती है।
कृषि और खाद्य सुरक्षा: अल नीनो के दौरान अनियमित मानसून पैटर्न कृषि उपज को प्रभावित करता है, जिससे खाघ सुरखा से संबंधित नुकसान हो सकता है
स्वास्थ्य पर प्रभावः अल नीनो भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए, शुष्क परिस्थितियाँ और गर्म लहरें गर्मी से संबंधित बीमारियों के खतरे को बढ़ाती हैं। इसके अतिरिक्त, मौसम में बदलाव से मलेरिया और डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियाँ भी फैलती हैं।
आर्थिक प्रभावः बदली हुई मौसम की स्थिति के महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव होते हैं। कृषि उत्पादन में कमी से खाय कीमतें बढ़ सकती हैं, जबकि चरम मौसम की घटनाओं से जुड़ी लागत देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकती है। मानसून की विफलता के साथ, भारत को उच्च मुद्रास्फीति और धीमी जीडीपी वृद्धि का सामना करना पढता है।
जलवायु घटनाए: अल नीनो भारत में अन्य जलवायवीय घटनाओ को उत्पन्न करने में योगदान दे सकता है, जैसे हीटवेव और तीव्र चक्रवात। ये घटनाएं बुनियादी ढांचे, संपति और मानव जीवन को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
वैश्विक तौर पर अल नीनो के प्रभाव को कम करने के प्रयास
आपदा जोखिम न्यूनीकरण कोष का निर्माणः पेरु जैसे देशों ने अल नीनो से निपटने के लिए आपदा जोखिम कोष बनाया है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण कोष विशेष रूप से अल नीनो के संभावित प्रभावों की तैयारी और उन्हें कम करने के लिए तैयार किया गया है।
बेहतर निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली :- अमेरिका स्थित राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) लगातार समुद्री और वायुमंडलीय स्थितियों की बेहतर निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी में निवेश करता है, जिससे आसन्न अल नीनो घटना की भविष्यवाणी करने में मदद मिलती है। एनओएए जैसे संगठनों की शुरुआती चेतावनियाँ दुनिया भर की सरकारों को पहले से तैयारी करने और संभावित प्रभावों को कम करने के लिए रणनीतियों को लागू करने में मदद करती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समझौतो को लागू करना कई देश अल नीनो के प्रभावों को प्रबंधित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और सम्मेलनों के माध्यम से सहयोग कर रहे है हैं। 196 देशों द्वारा हस्ताक्षरित पेरिस जलवायु समझौता, अल नीनो जैसी घटनाओं सहित जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनाया गया है। इन समझौतों में सूचना और संसाधनों को साझा करना, सामान्य रणनीतियों का विकास और अल नीनो से संबंधित अनुसंधान और विकास प्रयासों में सहयोग शामिल है।
जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासः चूँकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव संभावित रूप से अल नीनो की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा सकते हैं, अतः जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयास अल नीनो के प्रभावो को नियंत्रित करने से संबंधित है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) अल नीनो घटनाओं से निपटने की रणनीतियों सहित जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैश्विक नीतियों का मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कृषि और बुनियादी ढांचे में परिवर्तन :- भारत जैसे देशों में, जो अल नीनो से अत्यधिक प्रभावित हैं, वर्षा और तापमान में परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला होने के लिए कृषि पद्धतियों को अनुकूलित करने के प्रयास चल रहे हैं। इसमें सिंचाई सुविधाओं को लागू करना, फसल के प्रकारों में विविधता लाना और मौसम आधारित फसल बीमा को बढ़ावा देना शामिल है।
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