उद्यमिता क्या है , विशेषताएं एवं उद्यमिता के कार्य फॉर एमपीपीएससी मैंस पेपर 4
नमस्कार दोस्तों एमपीपीएससी मैंस के पेपर 4 के लिए आज आपको उद्यमिता की अवधारणा एवं विकास लेकर आए है।
उद्यमिता (Entrepreneurship) :-
उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम ये 6 गुण जिन व्यक्तियों के पास हैं उनकी सहायता देवता भी करते हैं।
इस दुनिया में दो तरह के लोग हैं। पहले जो हर परिस्थिति में समस्या ढूंढ लेते हैं और दूसरे जो हर परिस्थिति में समाधान ढूंढ लेते है। 1990 के दशक के मध्य में, एक व्यक्ति था जिसे एक अवसर का आभास हुआ। कमियों पर चिल्लाने के बजाय, उन्होंने समाधान निकालने का विकल्प चुना। आज वही व्यक्ति श्रीधर वेम्बू है जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं "यदि आपके पास किसी चीज़ के लिए पैसे नहीं हैं, तो उसे न खरीदें। कभी भी पैसे उधार न लें" -श्रीधर। इन्होंने तमिलनाडु के गाँव से अपनी कम्पनी की शुरुआत की जो आज भारत की सबसे बड़ी आईटी कम्पनी में से एक है। आज कम्पनी के सभी ऑफिस गाँव के आस पास बनायें गए है। देश और विदेश में वर्तमान में 12,000 कर्मचारी है। यह 9000 करोड़ से अधिक की कम्पनी बन चुकी है फिर भी श्रीधर वेम्बू अपने गाँव, साइकिल और खेत से जुड़े हुए है। गाँव के बच्चों को पढ़ाना और उन्हें कम्पनी में रोजगार देना उनका लक्ष्य है।
वेम्बू को भारत में 2019 अन्र्स्ट एंड यंग "एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर अवार्ड" से सम्मानित किया गया। वह 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, फ्द्म श्री से सम्मानित किये गए है।
विषय परिचय-
किसी भी राष्ट्र के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में 'उद्यमिता' का निर्णायक एवं महत्वपूर्ण स्थान होता है। उद्यमीय प्रवृत्तियों एवं कार्यों के कारण ही देश के संसाधनों व आय सम्पदा की उपलब्धता, संसाधनों को उत्पादक कार्यों में लगाना, नयी तकनीक, नयी प्रविधियों एवं नये दृष्टिकोणों को राष्ट्रहित में काम में लेना एवं अन्यानेक साहसिक निर्णयों द्वारा सृजनशीलता एवं क्रियात्मकता का निर्माण किया जाना सम्भव होता है। उद्यमियों व उद्यमिता की किसी भी भूमिका द्वारा मृत या निष्क्रिय सामाजिक व आर्थिक वातावरण संचेतन व सक्रियता की और उन्मुख किया जा सकता है। आज प्रत्येक प्रकार की अर्थव्यवस्था, चाहे वह समाजवादी हो या पूंजीवाद या साम्यवादी, अनेक समस्याओं व चुनौतियों का सामना कर रही हैं। व्यावसायिक जटिलताओं एवं नये सामाजिक व आर्थिक मूल्यों के कारण साहसिक योग्यताओं व कौशलता की महत्वत्ता अधिक बढ़ गयी हैं। उद्यमिता, विकसित और विकासशील देशों के विकास का मुख्य आधार बनती जा रही हैं। अतः उद्यमिता, वर्तमान युग का महत्वपूर्ण एवं निर्णायक आधार स्तम्भ बन गया है। निः संदेह प्रत्येक समाज व समाज के प्रत्येक समूह में साहसी या उद्यमी, सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों व विकास का नायक (Leader) या प्रेरक (Motivation) या अग्रदूत (Herbinger) माना जाने लगा है।
उद्यमिता, व्यक्ति में समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करने तथा लाभ कमाने की मंशा से व्यवसाय स्थापित करने के अपने विचारों को साकार स्वरूप प्रदान करके अपना व्यवसाय स्थापित करने की क्षमता अर्थात ज्ञान तथा कौशल है।
आर्थिक गतिविधियों में वस्तु और सेवा के उत्पादन हेतु चार कारक आवश्यक होते हैं उद्यमिता, भूमि, पूँजी और श्रम। उद्यमिता सबसे प्रमुख और पहला कारक होता है। उद्यमिता अथवा एंटरप्रेन्योरशिप, एंटरप्रेन्डे शब्द से उत्पन्न हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-बीड़ा उठाना
'उद्यमी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 18 वीं शताब्दी में फ्रांसीसी अर्थशास्त्री रिचार्ड कैन्टीलीन ने किया था। रिचार्ड कैन्टीलौंन ने उद्यमी शब्द को इस तरह से परिभाषित किया है- "एक प्रतिनिधि जो उत्पादन के साधनों को निश्चित मूल्य पर क्रय करता है तथा भविष्य में उनका अनिश्चित मूल्य पर विक्रय करने के लिए
निर्माण करता है।"
उद्यमी शब्द के अवलोकन से दृष्टिपात होता है कि उद्यमिता में चार तत्व शामिल होते है-
1. जोखिम / अनिश्चितता,
2. उत्पादन स्रोतों का सामंजस्य,
3. नवीनीकरण की प्रस्तावना तथा
4. पूँजी व्यवस्था करना।
नोट- उद्यमिता के अन्य नाम साहसवादिता, साहस, साहसिकता, उद्यमशीलता, उद्यमवृत्त।
उद्यमिता की परिभाषाएं-
उद्यमिता व्यवसाय में जोखिम उठाने की क्षमता या भावना के साथ-साथ नवप्रवर्तन एवं नेतृत्व प्रदान करने की योग्यता भी है। अतः कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।
1. जोसेफ शुम्पीटर के अनसार:- "उद्यमिता एक नवप्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्य की अपेक्षा एक नेतृत्व कार्य है"।
2. पीटर एफ ड्रकर के अनुसार :- व्यवसाय में अवसरों को अधिकाधिक करना अर्थपूर्ण है।वास्तव में उद्यमिता की यही सही परिभाषा है"।
3. प्रो० राव एवं मेहता के शब्दों में "उद्यमिता वातावरण का सृजनात्मक एवं नवप्रवर्तनशील प्रत्यूत्तर है"।
4. एच० डब्ल्यू० जॉनसन के अनुसार : "उद्यमिता तीन आधारभूत तत्वों का जोड़ है-अन्वेषण, नवप्रवर्तन एवं अनुकूलन"।
उद्यमिता के क्षेत्र-
एच.एन. पाठक के अनुसार उद्यमिता के क्षेत्र को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है जिनके संबंध में उद्यमी को अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं-
1. व्यावसायिक अवसरों का ज्ञान होना
2. औद्योगिक इकाई का संगठन करना
3. औद्योगिक इकाई को लाभप्रद एवं गतिशील संस्था के रूप में संचालित करना।
उद्यमिता की अवधारण या उद्यमिता के संबंध में विद्वानों के मत या विचार-
उद्यमिता का सम्बन्ध सीधे आर्थिक क्रियाओं से माना गाया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि व्यवसाय तथा आर्थिक क्रियाओं के क्षेत्र में उद्यमिता की अवधारणा का उदय लगभग 18 वीं शताब्दी में हुआ। इसके पहले उद्यमिता जैसी विचारधारा का प्रयोग सैन्य कार्यों, अभियांत्रिकी एवं औद्योगिक क्रियाओं के सम्बन्ध में किया जाता था। चूंकि उद्यमिता का सम्बन्ध आर्थिक क्रिया से सीधे माना गया है। अतः उद्यमी का अध्ययन करना आर्थिक क्रिया में मुख्य पात्र का अध्ययन करना है।
उद्यमिता की अवधारणाएं
विभिन्न विद्वानों ने उद्यमिता के आशय के अलग-अलग विचार प्रतिपादित किये हैं। प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं-
1. जोखिम अवधारणा : इस अवधारणा के अन्तर्गत जोखिम वहन करने वाले को ही उद्यमी माना गया है। जोखिम और अनिश्चितता के विरुद्ध सफलता प्रदान करने की शक्ति ही उद्यमिता की जोखिम अवधारणा है। प्रो० नाइट ने जोखिम को दो भागों में विभाजित किया है-
1.सामान्य जोखिम, 2. अनिश्चित जोखिम
2. संगठन एवं सम्नवय की अवधारणा :- इस अवधारणा के अनुसार उद्यमी को संगठनकर्ता के रूप में जाना जाता हैं उद्यमी उत्पादन के विभिन्न साधनों का संयोजन कर नई उपयोगी वस्तु अथवा सेवा का सृजन करता है। प्रो० जे०बी० ने कहा है "उद्यमिता वह आर्थिक घटक है जो उत्पादन के विभिन्न साधनों को संगठित करता है"।
3. प्रबन्धकीय कौशल की अवधारणा :- प्रो० जे०एस० मिल ने उद्यमिता को निरीक्षण, नियन्त्रण एवं निर्देशन की योग्यता माना है उद्यमिता की प्रबन्धकीय अवधारणा के अनुसार उद्यमी को प्रबन्धकीय कार्यों का कौशलपूर्ण ढंग से सम्पादन करना पड़ता है।
4. नवप्रवर्तन अवधारणा : नवप्रवर्तन अवधारणा का प्रतिपादन 1934 में शुम्पीटर द्वारा किया गया। उन्होंने उद्यमिता को नवप्रवर्तनशील घटक माना। विकासशील एवं विकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमिता की नवप्रवर्तन अवधारणा का स्वरूप दिखायी देता है। क्योंकि विकास नवीन परिवर्तनों, सुधारों पर निर्भर करता है।
5. मनोवैज्ञानिक प्रेरणा की अवधारणा : मैक्कीलेण्ड ने उद्यमिता को व्यक्ति का आकस्मिक व्यवहार मानकर इसे मनोवैज्ञानिक प्रेरणा माना है। इस अवधारणा के अनुसार उच्च उपलब्धियों को प्राप्त करना ही उद्यमिता है।
उद्यमिता के मूल तत्व या प्रकृति या लक्षण या विशेषताएं-
व्यवसाय एवं उद्योग के क्षेत्र में उद्यमिता के मूल तत्व या प्रकृति को भली-भाँति समझने के लिए उसकी विशेषताओं को समझना आवश्यक है। अतः उद्यमिता के मूल तत्व या पकृति या विशेषताएँ बिम्रानुसार है :-
1. जोखिम लेने की क्षमता: उद्यमिता का यह आधारभूत तत्व है क्योंकि इसमें व्यवसाय की भावी अनिश्चितताओं का सामना करने य जोखिम उठाने की भावना निहित होती है।
2. ज्ञान व शिक्षा पर आधारित :- उद्यमियों को अपने उद्योगों की स्थापना व संचालन की विधियों, व्यापारिक सन्नियमों, क्रय-विक्रय व्यवहारों, ग्राहक अभिमुखी विचारों व व्यावसायिक सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है।
3. व्यवसाय-अभिमुखी प्रवृत्ति: उद्यमिता व्यक्ति को व्यावसायिक कल्पना करने, योजना बनाने एवं किसी उद्योग को प्रारम्भ करने को प्रेरणा देती है। इससे समाज में नये-नये उद्योग-धन्धों की स्थापना होती है।
4. रचनात्मक क्रिया :- उद्यमिता व्यक्ति को नये-नये अवसरों को खोज करने, प्रति नल रचनात्मक चिन्तन करने व नवीन विचारों को क्रियान्नित करने की प्रेरणा देती है। शुम्पीटर के शब्दों, में उद्यमिता मूलतः एक 'सृजनात्मक क्रिया' है।" उद्यमिता के कारण ही देश में पूँजी निर्माण व अन्य रचनात्मक कार्य सत्त् रूप से चलते रहते हैं।
5. नये अवसरों की खोज की प्रक्रिया :- ऐसी प्रक्रिया के अन्तर्गत किसी उपयोगिता याले उत्पाद या सेवा का सृजन या नवाचार करने के अवसरों की खोज का कार्य भी किया जाता है।
6. प्रेरणात्मक क्रिया :- उद्यमिता नये विचारों, नये दृष्टिकोणों एवं नये सुअवसरों की खोज करने के लिए भी अभिप्रेरणाएं प्रदान करती है
7. संसाधनों की सृजनशीलता : उद्यमिता द्वारा ही साधनों को संसाधनों में परिवर्तित किया जा सकता है तथा संसाधनों को आर्थिक मूल्यों में रूपान्तरित किया जा सकता है।
8. 'प्रबन्ध' उद्यमिता का माध्यम है: प्रबंध किसी भी उपक्रम में प्रबन्ध की समस्त साहसिक निर्णयों व योजनाओं के क्रियान्वयन का माध्यम है। प्रबन्ध के द्वारा ही साहसी व्यवसाय में नये-नये परिवर्तन एवं सुधार लाता है।
उद्यमिता/उद्यमी की विशेषताएं और उनके लक्षण
1. आत्मविश्वास :- विश्वास, स्वतन्त्रता, वैयक्तिकता, आशावादी
2. कार्यपरिणाम अभिमुखी :- उपलब्धि की इच्छा, संकल्प, परिश्रम, प्रेरणा, ऊर्जा, पहलपन
3.जोखिम बहन :-जोखिम वहन योग्यता व चुनौती की इच्छा
4.नेतृत्व :-नेतृत्व व्यवहार, मानवीय व्यवहार, सुझावों व आलोचनाओं के प्रति अनुक्रियाशील
5.मौलिकता :- जब प्रवर्तक, सुजरशील, लोचशीलता, विचार स्वतंत्रता, साधन सम्पन्न
6.भविष्य उन्मुख :- बहुविज्ञ, सुविज्ञ, दूरदर्शी, अनुबोधक
उद्यमिता के कार्य -
किसी देश की तीव्र आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण के लिए उद्यमिता के कार्य अति महत्वपूर्ण है| उद्यमिता द्वारा सृजनात्मक एवं नव प्रवर्तन संबंधी कार्यों को प्रोत्साहन मिलता है जिससे समाज को नई-नई वस्तुएं एवं सेवाएं प्राप्त होती है-
1. जोखिम उठाने की क्षमता में वृद्धि करने का कार्य
2. संगठन एवं सनच्चय संबंधी कार्य
3. नेतृत्व एवं प्रबंधकीय कौशल संबंधी कार्य
4. नव प्रवर्तनकारी योग्यता के विकास का कार्य
5. उपयोगिता एवं आर्थिक मूल्य का सृजन करना
6. लाभप्रद व्यावसायिक अवसरों की पहचान करना
7. नवीन उपक्रमों की स्थापना
8. संचालन एवं विपणन का कार्य
9. आर्थिक सामाजिक समस्याओं का समाधान करना
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