मध्यप्रदेश के प्रमुख साहित्यकार | Madhyapradesh ke pramukh sahityakar ।

मध्यप्रदेश का साहित्य और साहित्यकार | Madhyapradesh ka sahitya aur sahityakar ।

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अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिन्दी साहित्य को चार कालखण्डों में विभाजित किया गया है।

* प्रथम काल आदिकाल अथवा गीरगाथा काल है। इस काल में बुंदेलखण्ड के महान लोक कवि जगनिक ने आल्हाखण्ड की रचना की।

* दूसरा काल भक्ति काल के नाम से जाना जाता है। इस काल में निर्जन एवं सगुण ब्रह्म की उपासना की जाती थी। निर्गुण संतों में कबीर दास जी का जनता पर व्यापक प्रभाव रहा। उनके शिष्य धर्मदास ने मध्यप्रदेश के गढ़ में अपनी गद्दी स्थापित की। तुलसीदास जी का प्रिय स्थिल चित्रकूट भी यही पर हैं। केशवदास संत, प्राणनाथ, गोपमहापात्र, नरहरि तथा व्यास आदि प्रतिठित लेखकों ने यहीं पर अपनी रचनाएं लिखी है।

 * तीसरा काल रीतिकाल के नाम से जाना जाता है। केशवदास के अतिरिक्त बिहारी, अक्षर, अनन्य,
पद्माकर, बोधा, ठाकुर तथा महाराजा विश्वनाथ सिंह की रचना स्थली भी यहीं है।

 • चौथा काल आधुनिक काल है। इस काल में हिन्दी साहित्य के पूर्वजागरण के पुराधा भारतेन्दु हरिशचन्द्र थे। मध्यप्रदेश में प्रमुख सहयोगियों में जबलपुर के साहित्कार ठाकुर जगमोहन सिंह का नाम भी आता है।

मध्यप्रदेश के साहित्यकारों के योगदान को देखें तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आनंद रघुनंदन को हिन्दी का प्रथम नाटक माना है और इस नाटक के रचयिता रीवा नरेश विश्वनाथ सिंह थे। हिन्दी कहानी की शुरुआत में मध्यप्रदेश में जन्मे डॉ. रामकुमार वर्मा का नाम आता है। उसी प्रकार व्यंग्य शैली को विधा के स्तर पर ऊँचा उठाने में हरिशंकर परसाई का नाम आता है।

हिन्दी साहित्य में गजल को स्थापित करने एवं लोकप्रिय बनाने का श्रेय श्री दुष्यन्त कुमार को जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास तथा आलोचना के क्षेत्र में भी प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी का नाम उल्लेखनीय है।

म.प्र. की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाएँ-

पहल आवेग, तनाव, सापेक्ष, वसुधा, कृति, साक्षात्कार तथा पथ, प्रसंग, कला वार्ता, कंक, साम्य, वीणा, अंतत
इसलिए नया विकल्प पूर्वदेवा आदि।

 बोलियों की दृष्टि से प्रदेश में बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी बोलियों का प्रयोग सम्बन्धित क्षेत्रों में व्यापक
रूप से होता है। झाबुआ एवं अलीराजपुर जैसे आदिवासी क्षेत्र में भीली बोली का व्यवहार होता है।

संगीतः

भारत के महान संगीतकार तानसेन और बैजू बावरा ग्वालियर के थे। ग्वालियर तानसेन की भूमि और ध्रुपद की जन्मस्थली भी है। राज्य का सबसे पुराना संगीत विद्यालय माधव संगीत विद्यालय यहीं है। भोपाल में 1979 में स्थापित उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत अकादमी ने प्रदेश और देश में संगीत के प्रोत्साहन में अपूर्व योगदान दिया है। मेवाती घराने का जन्म भोपाल में ही हुआ है। पं. जसराज इसी घराने से संबंधित हैं। उस्ताद अमीर खाँ ने अपनी शैली को इंदौर घराना का नाम दिया है। प्रसिद्ध मैहर बैण्ड की स्थापना मैहर में बाबा अलाउद्दीन खाँ ने की थी। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ ने पूरे प्रदेश में संगीत की शिक्षा को सुलभ बनाया। सुगम संगीत के क्षेत्र में प्रदेश की लता मंगेशकर, किशोर कुमार ने विश्वव्यापी ख्याति अर्जित की।

नृत्यः

कत्थक के क्षेत्र में प्रदेश के रायगढ़ घराने का गौरवपूर्ण स्थान है जिसके संस्थापक राजा धर सिंह थे। उनकी परम्परा ने कार्तिक राम, कल्याण दास, धीरज महाराज ने भी राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। ग्वालियर की संस्था रंगश्री लिटिल बैले ग्रुप तथा म.प्र. शासन के भारत हृदय वैले ग्रुप ने अच्छी ख्याति अर्जित की है ग्वालियर के बापूराव शिंदे, इंदौर के प्रताप पवार, उज्जैन के पुरु दाधिच श्रेष्ठ नृत्यकार के रूप में प्रतिष्ठित है। वहीं भरतनाट्यम के प्रचार-प्रसार में प्रदेश के शंकर होम्बल का विशिष्ट योगदान रहा है।

चित्रकलाः

भीमबेटका में प्राप्त प्रागैतिहासिक शैलचित्र बाघ के गुफाचित्र, तेरहवीं शताब्दी की रीवा की बघेलखण्डी कलम चित्रकला का इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। बी. डी. देवलालीकर ने देश के शीर्षस्थ चित्रकारों को प्रशिक्षित कर प्रदेश के ख्याति दिलायी। इसमें प्रमुख है

  • श्री डी.जे जोशी,
  • विष्णु चिंचोलकर,
  • सैयद हैदर रजा,
  • एम.एस. बेन्द्रे आदि।
  • आदिवासी कलाकार जनगण सिंह ने विशिष्ट शैली में नवीन प्रयोग कर ख्याति प्राप्त की है।


मूर्तिकलाः

आधुनिक मूर्तिकला के क्षेत्र में अन्ना साहेब फड़के और नागेश यवलकर का नाम उल्लेखनीय है। श्री रूद्र हाजी अलंकृत शैल के प्रतिष्ठित कलाकार हैं। श्री डी. जे. जोशी ख्यातिलब्ध चित्रकार के साथ श्रेष्ठ मूर्तिकार भी है। फड़के का कला केन्द्र और स्टूडियो तथा भोपाल स्थित भारत भवन ने मूर्तिकला के विकास में उल्लेखनीय काम किया है। प्रदेश के अन्य श्रेष्ठ मूर्तिकार है- राजुल भंडारी, अशोक प्रजापति मदन भटनागर, शशिकांत मुंडी आदि।

साहित्यः

प्राचीन - कालिदास, भर्तृहरि, भवभूति, बाणभट्ट।

मध्यकालीन - केशव, पद्माकर, भूषण।

आधुनिक - पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, गजानन माधव, मुक्तिबोध, पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन, भवानी प्रसाद शर्मा, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, मुल्ला रमजी, डॉ.

शिवमंगल सिंह सुमनः तथा नंद दुलारे वाजपेयी। लोकसाहित्य - मध्यप्रदेश की बोलियाँ, ईसुरी तथा सिंगाजी

कालिदास

जीवन परिचयः जन्मस्थान और जन्मतिथि के संबंध में हमारा इतिहास मौन है। कालिदास को चौथी- पाँचवीं शताब्दी ई. का स्वीकार करते हैं तथा उन्हें उज्जैन नरेश गुप्त शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्रों में से एक मानते हैं। 

रचनाएँ

कालिदास की सात प्रामाणिक रचनाएँ मिलती है जिनमें से तीन नाटक (अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम, मालविकाग्निमित्रम्) और चार काव्य (मेघदूतम्, कुमारसंभव, रघुवंशम, ऋतुसंहार) है। उनकी सर्वकालिक श्रेष्ठ कृति अभिज्ञान शाकुन्तलम् की विषयवस्तु राजा दुष्यंत और शकुन्तला से संबंधित है। यह संस्कृत की पहली रचना थी जिसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। रघुवंशम का विषय रामायण से लिया गया है जबकि कुमार संभवम् में शिव पार्वती का विवाह एवं कार्तिकय के जन्म से संबंधित धार्मिक कथा है। मालविकाग्निमित्रम में जुंग इतिहास मिलता है। विक्रमोवीयम् में उर्वशी और पुरूरवा की कथा है।

भर्तृहरि

भर्तृहरि संस्कृत के एक बहुत बड़े कवि एवं उज्जयिनी के राजा थे। प्रबंध चिन्तामणि के अनुसार विक्रमादित्य उनके लघुचाता थे। भर्तृहरि ने रानी पिंगला के सौंदर्य से प्रभावित होकर उनसे तीसरा विवाह किया। कालांतर में पिंगला की चरित्रहीनता का पता चलने पर उन्होंने राजपाट त्याग दिया।

रचना वैशिष्ट्यः

एक श्लोकी कविताओं की शैली के वे सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। श्रृंगार शतक, नीति शतक, वैराग्य शतक

उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है। भर्तृहरि के नाम से तीन महत्वपूर्ण व्याकरणिक रचनाएँ भी प्रसिद्ध है- महाभाष्य टीका, वाक्पदीय और शब्द धातु समीक्षा, ये तीनों रचनाएँ व्याकरण और शब्द विज्ञान के विषय में हैं।

भवभूति

भवभूति का समय 8वीं शताब्दी ई. का था। भवभूति का जन्म पद्मपुर में हुआ था। पिता नीलकंठ व माता
जानकर्णी थीं। ज्ञाननिधि इनके गुरु थे।
श्रीकंठ इनका मूल नाम था। कल्हण के अनुसार उन्हें कन्नौज नरेश यशोवर्मन का आश्रय प्राप्त था।

रचना वैशिष्ट्यः

भवभूति ने तीन प्रसिद्ध नाटक- महावीर चरित्र, मालवी माधव और उत्तराम चरित्र लिखे। उनके नाटकों में सबसे लोकप्रिय 'मालती माधव' है जिसमें एक छात्र का उज्जैन दरबार के मंत्री की कन्या मालती से प्रेम का चित्रण है।

बाण भट्ट

रचना वैशिष्ठ्यः वाणभट्ट की दो प्रमाणिक कृतियां है पहली हर्ष चरित जो एक ऐतिहासिक उपन्यास है जिसमें हर्ष वर्धन के जीवन का कुछ विवरण दिया है। कादंबरी में एक राजकुमारी के भाग्य का वर्णन है।

केशवदास

हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के प्रथम आचार्य और महाकवि केशवदास काशीनाथ मिश्र के पुत्र थे उनका जन्म 1555 ई. में हुआ। वे ओरछा नरेश के भाई इन्द्रजीत सिंह के दरबार में कवि थे। उन्होंने अपनी रचना कविप्रिया महाराजा इंद्रजीत सिंह की पतिव्रता गणिका रायप्रवीण को शिक्षा देने के लिए लिखी थी।

रचना वैशिठ्यः

केशवदास द्वारा रचित नौ प्रमाणिक ग्रंथ प्राप्त होते हैं। इनके नाम हैं रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, वीर सिंह चरित, कविप्रिया, विज्ञान गीता, रतन बावनी, जहांगीर जस चंद्रिका नखशिव छन्दमाला। केशवदास की सर्वाधिक विशिष्ट रचना रामचंद्रिका है जिसमें रामकथा का वर्णन है। 

पद्माकर:

इनका जन्म 1773 में सागर में हुआ था। इनके पिता मोहनलाल भट्ट बापंदा से सागर आये थे। 1833 में कानपुर में इनकी मृत्यु हुई। 

रचना वैशिष्ट्यः

पद्माकर रचिन 9 ग्रंथ बताएं जाते हैं पद्माभरण, जगदविनोद, हिम्मद बहादुर विरुदावली, प्रताप सिंह
विरुदावली, जयसिंह विरुदावली, प्रबोध पचासा, राम रसायन, गंगालहरी, आलीजाह प्रकाश हितोपदेश,
कलि पच्चीसी। इनमें पद्माभाटण और जगदविनोद प्रसिद्ध रीतियां है।

भूषणः

रीतिकाल में वीर रस को काव्य का मुख्य विषय बनाकर इन्होंने अपना अलग स्थान बनाया चित्रकूट के सोलंकी राजा रूद्र से इनको भूषण की उपाधि मिली थी।


रचना वैशिष्ट्य-

इसकी प्रमुख रचनाएं शिवराज भूषण, शिवावादनी और छत्रसाल दशक तथा भूषण उल्लास, भूषण हजारा और दूषण उल्लास है।

पंडित माखनलाल चर्तुवेदी

भारतीय आत्मा के रूप में विख्यात पं. माखन लाल चर्तुवेदी का जन्म 1899 में होशंगाबाद के बाबई ग्राम में हुआ। इनकी प्रथम रचना रसिक मित्र व्रजभाषा में प्रकाशित हुई थी। वे प्रभा पत्रिका के संपादक मण्डल के सदस्य एवं कर्मवीर के संपादक रहे। पुष्प की अभिलाषा नामक प्रसिद्ध कविता अपने बिलासपुर जेल में लिखी थी। 30 जनवरी 1968 को खण्डवा में आपकी मृत्यु हुई।

रचना वैशिष्ट्व

उनकी रचनाओं में मुख्य है हिम किरीटिनी, हिम तरंगिनी, मरण ज्वार, धूम्रवलय, बिजुरी काजल आंज रही, युगचरण, समर्पण (सभी काव्य), साहित्य देवता (गद्यगीत), कृष्णार्जुन युद्ध (नाटक), वनवासी (कहानी संग्रह), कला का अनुवाद (कहानी), अमीर इरादे, गरीब इरादे (निबंध), समय के पांच (संस्मरण) चिन्तक की लाचारी (भाषण), रंगों की बोली।

सुभद्रा कुमारी चौहान

रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 1904 ई. में कवियों की नगरी इलाहाबाद में हुआ। खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ आपका विवाह हुआ। आप म.प्र. असेम्बली की सदस्या भी रहीं। अपनी रचनाओं पर दो बार इन्हें सक्सेरिया पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1948 में बसंत पंचमी को एक सड़क दुर्घटना में आपका दुःखद निधन हो गया।

रचना वैशिष्ट्य

इनकी प्रमुख रचनाएँ है- मुकुल, त्रिधारा, सीधे सादे चित्र, बिखरे मोती, उन्मादिनी, झाँसी की रानी, सभा के खेल, राखी की चुनौती, बचपन। 'झाँसी की रानी', 'बीरों का कैसा हो बसंत' और 'राखी की चुनौती' भी प्रेरक राष्ट्रवादी कविताएँ हैं।

मुकुल' उनका काव्य संग्रह है। 'सभा का खेल' में बालोपयोगी रचनाएँ संकलित है तथा 'बिखरे मोती' और
'उन्मादिनी' उनके कथा संग्रह हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध

मुक्तिबोध का जन्म 14 नवंबर, 1917 को श्योपुर कलां में हुआ था। उनकी मृत्यु 11 सितंबर, 1964 को हुई।

रचनाएँ:

चाँद का मुँह टेड़ा है, नये निबंध, भूरी-भूरी खाक धूल, एक साहित्यिक की डायरी, नई कविता का आत्म संघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र, कामायनी एक पुनर्विचार, भारत इतिहास और संस्कृति। समाचार पत्र समता (जबलपुर) को सेवाएँ दी।
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बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'

इनका जन्म 8 दिसम्बर, 1897 को शाजापुर में हुआ।

रचनाएँ :
कुमकुम, रहिमरेखा, अपलक, विनोबा स्तवन, उर्मिला, हम विषपायी जनम के क्वासि, प्राणार्पण। उन्होंने 'प्रभा' एवं 'प्रताप' के संपादक के रूप में कार्य किया। आपका निधन 29 अप्रैल सन् 1960 को हुआ। 

भवानी प्रसाद मिश्र

इनका जन्म 23 मार्च, 1914 को ग्राम खिरिया, संक्षिप्त जिला होशंगाबाद में हुआ था। सेवाग्राम से निकलने वाली 'महिलाश्रम' पत्रिका के अलावा 'कल्पना' का संपादन भी 'बुनी हुई हरिशंकर पर रस्सी' पर आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। आपका निधन होशंगाबाद में सन् 1985 में हुआ।

रचना वैशिष्ट्व

प्रकाशित रचनाओं में 'गीतफरोश', 'चकित है दुख', 'अँधेरी कविताएँ', 'गाँधी पंचशती', 'बनी हुई रस्सी', 'खुशबू के शिलालेख', 'व्यक्ति गात, 'परिवर्तन के लिए, 'अनाम तुम आते हो' प्रमुख है। गाँधी पचशता उनका महाकाव्य है।

हरिशंकर परसाई


जन्म 22 अगस्त, 1924 ई. को जमानी ग्राम होशंगाबाद में हुआ। आपकी मृत्यु 10 अगस्त, 1995 को हुई।

रचनाएँ:
हँसते है रोते हैं', 'जैसे उनके दिन फिरे', 'रानी नागफनी की कहानी तट की खोज', 'तब की बात और थी', 'भूत के पाँव पीछे', 'बेईमानी की परत', 'पगडंडियों का जमाना', 'सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है, 'अंत में', 'विकलांग श्रद्धा का दौर', 'पूछिए परसाई से' (स्तम्भ लेखन) से वसुधा पत्रिका निकाली, प्रहरी का सम्पादन भी किया।

मुल्ला रमूजी


जन्म 21 मई, 1896 को भोपाल में हुआ। सन् 1921 में मुल्ला रमूजी की पहली किताब 'गुलाबी उर्दू 
प्रकाशित हुई। वह मुख्यतः हास्य-व्यंग्य लिखते थे।

प्रमुख रचनाएँ:

इन्तिखावे - गुलाबी उर्दू, मजमुआ गुलाबी उर्दू, मीकालात गुलाबी उर्दू, अंगुरा, औरत जात, लाठी और भैंस, मुसाफिरखाना, सुबह की लताफत, शिफाखाना, शायरी जेग, मशहिरे भोपाल, तारीख।


शरद जोशी

जन्म 23 मई 1931 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में हुआ।

रचनाएं
पिछले दिनों, यथासंभव परिक्रमा, रहा किनारे बैठा, जी पर सवार इल्लियां, फिर किसी बहाने, अंधों का हाथी, एक था गधा, तिलिस्म कहानी संग्रह, मैं और केवल मैं।

आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी

जन्म 4 सितम्बर 1906 को मंगरावर गांव उन्नाव जिला उत्तरप्रदेश में हुआ था।

डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन'

जन्म झगरपुर गाँव में 14 अगस्त, सन् 1915 में हुआ। यह गाँव वर्तमान में उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले में है।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा रीवा में हुई।

काव्य रचनाएँ:
हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, पर आँखें नहीं भरी, विन्ध्य हिमालय, मिट्टी की बारात, युग का मोल। 'विश्वास बढ़ता ही गया' पर आपको देव पुरस्कार प्राप्त हुआ तथा 'मिट्टी की बारात
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत है।


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