प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत :- PRATIYOGITAMITRA

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आज की पोस्ट के माध्यम से हम प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत :- PRATIYOGITAMITRA के बारे में जानेंगे |

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत:- 

प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मुख्यतः कर स्रोतों से प्राप्त  होती है।

1. धर्म ग्रंथ     2.ऐतिहासिक ग्रंथ     3.विदेशियों का विवरण 
4. पुरातत्व संबंधी साक्ष्य 

धर्मेंद्र मिलने वाली महत्वपूर्ण जानकारी

भारत का सर्वे प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है इसके संकलन करता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है वेद चार है:- ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद।

ऋग्वेद

ऋचाओं की क्रमबद्ध ज्ञान ज्ञान को ऋग्वेद कहा जाता है इसमें 10 मंडल , 1028 सूक्त एवं 10462 ऋचाएं है । इस वेद की ऋचाओं को पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते  हैं इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली और इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।

विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्रह इसके नवे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है ।

इसके आठवीं मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल  कहा जाता है।

चतुष्वर्ण की कल्पना का का आदि स्त्रोत ऋग्वेद के दसवीं मॉडल में वर्णित पुरुष सूक्त है। , जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राहमण , क्षत्रिय , वैश्य  तथा शूद्र  आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख्य भुज जाघों और चरणों से उत्पन्न हुए हैं। 


वामनावतार के तीन पगो के आख्यान का प्राचीन स्त्रोत ऋग्वेद है।
ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गई है ।

 यजुर्वेद 

सस्वर पाठ के लिए मित्रों तथा बली के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है इसके पाठ्यकर्ता को अध्वर्यु कहते है।

यह एक ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में है।


सामवेद

यह गाई जा सकने वाले ऋचाओं का संकलन है । इसके पाठ्यकर्ता को उद्रात कहते है।

इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है 

अथर्ववेद 

इस वेद  रचनाअथर्वा ऋषि द्वारा की गई है इस वेद में रोग निवारण , तंत्र मंत्र , जादू टोना,  शाप वशीकरण ,आशीर्वाद स्तुति,  प्रायश्चित , औषधी अनुसंधानधान, विवाह, प्रेम , आदि ।विविध विषयों से सम्बद्ध मंत्र तथा सामान्य मनुष्यों के विचारों , विश्वासों , अंधविश्वासों इत्यादि का वर्णन है।


इसमें सभा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है।

नोट :-सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।

वेदों को भली भांति समझने के लिए 6 वेदंगों की रचना हुई है। यह है शिक्षा ,ज्योतिष ,कल्प, व्याकरण, निरुक्त ,तथा छंद ।

भारतीय इतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा विवरण पुराणों में मिलता है । इसकी रचयिता लोमहर्ष और उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं इनकी संख्या 18 है इनमें से केवल पांच मत्स्य , वायु , विष्णु , ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं का उल्लेख है।
 
नोट :- पुराणों में मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक है।

संस्कृत पुराण सरल संस्कृत में लिखे गए है। स्त्रियों तथा शूद्र  जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी । वे भी पुराण सुन सकते थे । पुराने का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे।

स्मृतिग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है। यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है। नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है।

> जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है। हीनयान का प्रमुख ग्रंथ 'कथावस्तु' है जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है।

> जैन साहित्य को आगम् कहा जाता है। जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास 'कल्पसुत्र' से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।

अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) हैं। यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है। इससे मौर्य कालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।

> संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।

> अरबों की सिंध-विजय का वृत्तांत चचनामा (लेखक अली अहमद) में सुरक्षित है।

> 'अष्टाध्यायी' (संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक) के लेखक पाणिनी हैं। इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।

- कत्यायन की गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।

> पंतजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे. इनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास का पता चलता है।

विदेशी यात्रियों से मिलनेवाली प्रमुख जानकारी

 यूनानी-रोमन लेखक


(I) टेसियस: यह ईरान का राजवैद्य था। भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।

(ii) हेरोडोटस : इसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ईसापूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है।




) सिकन्दर के साथ आनेवाले लेखकों में निर्याकस, आनेसिन्क्रटस तथा आस्टिोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं।

 मेगास्थनीजः यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था। इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य-युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
 डाइमेकसः यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य-युग से संबंधित है

डायोनिसियस : यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था।

टॉलमी: इसने दूसरी शताब्दी में 'भारत का भूगोल' नामक पुस्तक लिखी।

 प्लिनी: इसने प्रथम शताब्दी में 'नेचुरल हिस्ट्री' नामक पुस्तक लिखी। इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थो आदि के बारे में विवरण मिलता है।

 पेरीप्लस ऑफ द इरिग्रयन-सी इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 80 ई० में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।

चीनी लेखक
 फाहियान: यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरवार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है।

 संयुगन यह 518 ई० में भारत आया। इसने अपने तीन वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित कीं।

हुएनसाँगः यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था। हुएनसींग 629 ई० में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा। भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई० में चीन लौट गया। वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था। इसका भ्रमण वृत्तांत सि-यू-की नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था।

नोटः हुएनसग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।

 इत्सिंग :- यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है

अरबी लेखक

अलबरूनी: यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरवी में लिखी गई उसकी कृति 'किताब-उल-हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द (भारत की खोज), आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इसमें राजपूत-कालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है।

अन्य लेखक

(i) तारानाथ: यह एक तिब्बती लेखक था। इसने 'कंग्युर' तथा 'तंग्युर' नामक ग्रंथ की रचना की। इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।

(ii) मार्कोपोलो: यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था। इसका विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है।
पुरातत्त्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी:- 

> 1400 ई० पू० के अभिलेख 'बोगाज-कोई' (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते हैं।


> मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत 'होलियोडोरस' के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है।

सर्वप्रथम 'भारत वर्ष' का जिक्र हाथी गुम्फा अभिलेख में है।

सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देने वाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है।

सर्वप्रथम भारत पर होने वाले हुण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभलेख से प्राप्त होती है।

सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानू गुप्त) से प्राप्त होती है।


रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।

नोट: अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।

> कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास (गड्डा घर) का साक्ष्य मिला है। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थी।

प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है।



सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।

> समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है।

> अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं।


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