भारत की भौगोलिक स्थिति।भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्व (The Significance of Physical Position of India) (Physical Position of India)
भारत सम्पूर्ण एशिया का एक विशाल देश है, जिसकी आकृति चतुष्कोणीय है। इसकी विशालता के कारण इसे उपमहाद्वीप की संज्ञा भी दी जाती है। यह दक्षिण एशिया में स्थित है। भारत अक्षांशीय दृष्टि से उत्तरी गोलार्द्ध में तथा देशांतरीय दृष्टि से पूर्वी गोलार्द्ध में स्थित है। भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4' उत्तरी अक्षांश से 376' उत्तरी अक्षांश तक तथा देशांतरीय विस्तार 68°7' पूर्वी देशांतर से 97°25′ पूर्वी देशांतर तक स्थित है। कर्क रेखा भारत के मध्य से गुजरती है।
भारत का सबसे उत्तरी बिन्दु इंदिरा कॉल है, जो लद्दाख में स्थित है तथा सबसे दक्षिणी बिन्दु इंदिरा प्वाइन्ट है, जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार में स्थित है। इंदिरा प्वाइन्ट को पिगमेलियन प्वाइन्ट के नाम से भी जाना जाता है। भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम बिन्दु कन्याकुमारी (तमिलनाडु) है।
भारत का विस्तार ऊष्ण तथा उपोष्ण दोनों कटिबंधों में है, फिर भी समूचे भारत में ऊष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है। भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 किमी है तथा क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से यह रूस, कनाडा, चीन, अमेरिका, ब्राजील तथा ऑस्ट्रेलिया के बाद विश्व का 7वां सबसे बड़ा (2.43 प्रतिशत) देश है। भारत की पूर्व से पश्चिम की लम्बाई 2,933 किमी तथा उत्तर से दक्षिण की लम्बाई 3,214 किमी है। भारत की कुल स्थलीय सीमा 15,200 किमी तथा मुख्य भूमि की तटीय सीमा 6,100 किमी है। द्वीपों सहित भारत की कुल तटीय सीमा 7,516.6 किमी है। इस प्रकार भारत की कुल सीमा 22,716.6 किमी है। यदि राज्यवार देखा जाए, तो गुजरात की तटीय लम्बाई सर्वाधिक तथा इसके बाद आन्ध्र प्रदेश का स्थान आता है।
भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्व (The Significance of Physical Position of India)
स्थलाकृति के संदर्भ में
भारतीय महाद्वीप तीनों ओर से सागर से घिरा है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। हिन्द महासागर के शीर्ष में स्थित होने के कारण भारत के पूर्व एवं पश्चिम को जोड़ने वाले जल एवं वायु मार्गों पर भारत का स्वतः नियंत्रण है, जो भू सामरिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है।
* जलवायु के संदर्भ में
भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत की जलवायु मानसूनी है। इसमें ऋतुओं का परिवर्तन तथा प्रत्येक ऋतु की विशेषता भारत को सम्पूर्ण विश्व में अलग पहचान प्रदान करती है। उत्तर में हिमालय, दक्षिण में सागरीय क्षेत्र एवं मरुस्थलीय तथा तटीय प्रभाव भारत को जलवायविक विविधता प्रदान करते हैं। उत्तर में स्थित हिमालय अति-ठण्डी साइबेरियन पवनों को रोककर शीतलहर से भारत की रक्षा करता है।
सामाजिक संदर्भ में
भारत अपनी भौगोलिक विशेषता के कारण प्राचीनकाल से ही कई ऐतिहासिक वंशों स्थली रहा है तथा समय के साथ-साथ कई देशों के साथ व्यापार, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास के क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में विभिन्न भौगोलिक दशाओं की उपस्थिति के कारण यहां सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता दिखाई देती है।
* आर्थिक संदर्भ में
उष्णकटिबंधीय जलवायु होने के कारण भारत के विभिन्न क्षेत्र में जलवायविक विविधता दिखाई देती है, जिस कारण यहां तीनों प्रकार की फसलें रबी, खरीफ तथा जायद का उत्पादन होता है। भारत के दक्षिण में प्राचीनतम चट्टानों के उपस्थित होने के कारण यह क्षेत्र खनिज संसाधनों की दृष्टिकोण से अत्यन्त धनी है। भारत में दोनों प्रकार के धात्विक व अधात्विक खनिज पाए जाते हैं। भारत की लम्बी तटीय रेखा होने के कारण मत्स्य उत्पादन तथा अन्य जैविक संसाधनों में भारत अग्रणी है।
सामरिक एवं सुरक्षा के संदर्भ में
भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति उसकी सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही है। जहां एक ओर दक्षिणी भारत में सागरीय स्थिति होने के कारण हजारों वर्षों से इस ओर से भारत को किसी भी विदेशी आक्रमण का खतरा नहीं हुआ है, वहीं दूसरी ओर उत्तर में स्थित हिमालय भारत के लिए प्रहरी का कार्य करता है।
भारत के उत्तर में महान हिमालय का स्थित होना तथा दक्षिण में हिन्द महासागर का स्थित होना इसकी सामरिक स्थिति को इंगित करता है। इस कारण भारत एशिया में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में महत्वपूर्ण स्थिति रखता है।
उपर्युक्त तथों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत की भौगोलिक स्थिति न केवल सम्प्रभु भारत की राजनीतिक सीमा के विस्तार को व्यक्त करती है, बल्कि भारत की वर्षा व जलवायु एवं आर्थिक संदर्भों की विस्तृत व्याख्या करती है।
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