भारत की भौगोलिक संरचना का निर्माण । Formation of Geographical Structure of India)
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भारत की भौगोलिक संरचना के निर्माण की व्याख्या 02 प्रमुख सिद्धान्तों महाद्वीपीय विस्थापन/प्रवाह एवं प्लेट टेक्टोनिक के अन्तर्गत की जाती है। भारत के निर्माण की प्रक्रिया जुरैसिक काल से आरंभ होकर निरन्तर क्वार्टनरी युग तक चलती है।
वेगनर के सिद्धान्त के अनुसार कार्बोनिकफेरस युग के पहले विश्व के सभी स्थलखण्ड दक्षिणी ध्रुव के पास पेंजिया के रूप में संगठित थे। कार्बोनिकफेरस के पश्चात पेंजिया में विभाजन के परिणामस्वरूप 02 बड़े स्थलखण्डों अंगारालैण्ड तथा गोण्डवाना लैण्ड का निर्माण हुआ, जो क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी स्थलखण्ड थे। इन स्थलखण्डों के मध्य एक जलीय भाग टेथिस सागर का भी निर्माण हुआ, जो वर्तमान में भू-मध्यसागर के रूप में स्थित है।
जुरैसिक काल में गोण्डवाना एवं अंगारालैण्ड का विभाजन आरंभ हुआ तथा गोण्डवाना लैण्ड के विभाजन के परिणामस्वरूप प्रायद्वीपीय भारत का निर्माण हुआ। प्रायद्वीपीय भारत, जो भारत का सबसे बड़ा एवं सबसे प्राचीन भौगोलिक प्रदेश कहलाता है, पृथक्करण के दौरान पश्चिमी घाट जैसे भ्रंश कगार का निर्माण हुआ।
कालान्तर में प्लेटों के अभिसरण के कारण टर्शियरी युग में हिमालय जैसे वलित पर्वतों का निर्माण हुआ। टर्शियरी युग में ही प्लेटों के अभिसरण के परिणामस्वरूप नारकोण्डम एवं बैरन जैसे ज्वालामुखी द्वीपों तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के अधिकांश भागों का निर्माण हुआ, जिन्हें हिमालय का निमज्जित विस्तार भी माना जाता है। क्वार्टनरी युग में हिमालय से निकलने वाली नदियों, जैसे गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से उत्तर भारत के मैदान का निर्माण हुआ।
इसके अतिरिक्त पूर्वी एवं पश्चिमी घाट के पूर्व एवं पश्चिमी में स्थित तटीय संरचना, जिसे तटीय मैदान कहा जाता है, का निर्माण प्रायद्वीपीय नदियों के द्वारा लाए गए मलबों के जमाव से हुआ है। साथ ही इस तटीय संरचना के निर्माण में निमज्जन एवं उत्थान जैसी भू-गर्भिक हलचलों का महत्वपूर्ण योगदान है।
इस प्रकार भारत की भौगोलिक संरचना का निर्माण विभिन्न कालक्रमों में घटित भू-गर्भिक हलचलों का संयुक्त परिणाम है।
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